SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ { 88 [आवश्यक सूत्र विवेचन-यह समुच्चय पच्चक्खाण का पाठ है। इस पाठ से नवकारसी, पौरसी आदि के पच्चक्खाण किये, करवाए जाते हैं। इसके अलावा नवकारसी, पौरसी, एकासन, उपवास, आयंबिल आदि के अलग से 10 पच्चक्खाण नीचे दिये जा रहे हैं। पच्चक्खाण-सूत्र 1. नमोक्कार-सहियं (नवकारसी) मूल- उग्गए सूरे नमोक्कारसहियं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं वोसिरामि। भावार्थ-सूर्य उदय होने पर नमस्कार सहति-दो घड़ी दिन चढ़े तक का (नोकारसी का) प्रत्याख्यान ग्रहण करता हूँ और अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम-इन चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। प्रस्तुत प्रत्याख्यान में दो आगार अर्थात् अपवाद हैं-अनाभोग-अत्यन्त विस्मृति और सहसाकारशीघ्रता (अचानक)। इन दो आगारों के सिवा चारों आहार त्याग करता हूँ। विवेचन-नवकारसी (नमस्कारिक) नमस्कार सहित प्रत्याख्यान । प्रवचन सारोद्धार वृत्ति में मुहूर्त का विशेषण मानते हुए कहा है- 'सहित शब्देन मुहूर्तस्य विशेषित्वात्' अर्थात् नमस्कार का उच्चारण किया जाता है, ऐसे मुहूर्त का प्रत्याख्यान । दूसरों को प्रत्याख्यान कराना हो तो मूल पाठ में वोसिरे' कहना चाहिये, यदि स्वयं को करना हो तो उल्लिखित पाठानुसार वोसिरामि' कहना चाहिये। नवकारसी के दो आगार-जैन धर्म विवेक प्रधान धर्म है। अज्ञानता एवं अशक्तता आदि कारणों से कई बार व्रत भंग होने की सम्भावना रहती है। ऐसी स्थिति में अगर आगार रख ले तो व्रत भंग होने की गुंजाइश ही नहीं रहती है। आगार-आकार-अपवाद-आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में कहा है-'अक्रियते विधीयते प्रत्याख्यान-भंग-परिहार इति आकार (आगार)' अर्थात् प्रत्याख्यान भंग का परिहार करने के लिए जो किया जाये वह आकार है । यही बात आचार्य हरिभद्र जी अपनी आवश्यक सूत्र वृत्ति में लिखते हैं-'आकारा हि नाम प्रत्याख्यानापवाद हेतुः।' (1) अनाभोग-प्रत्याख्यान की विस्मृति हो जाने पर कुछ खा लेना । प्रत्याख्यान की स्मृति आते ही खाना छोड़ देना । (2) सहसाकार-मेघ बरसने से या दही बिलौते समय अचानक छींटा मुँह में चला जाय। 1. खुद त्याग करे तो वोसिरामि ऐसा तीन बार बोले और दूसरों को त्याग कराना हो तो “वोसिरे" ऐसा तीन बार बोलें।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy