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________________ आज्ञा का पुरुषार्थ बनाता है सहज को 'शुद्धात्मा' रूप से देखू, तो प्रकृति अपने आप एडजस्ट हो जाएगी न? दादाश्री : हो ही जाएगी। यदि मारेंगे तो प्रकृति उछलेगी, वर्ना यों ही सरल-सहज भाव में आ जाएगी। यह खुद असहज हुआ न, इसलिए वह प्रकृति कूदती रहती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन जिन्होंने ज्ञान लिया है, उनकी प्रकृति सहज रहती है, परंतु सामने वाले ने नहीं लिया हो, उनकी थोड़ी न, सहज रहती है? दादाश्री : लेकिन जो ज्ञान वाला है, वह दूसरे की प्रकृति के साथ सहज रूप से काम कर सकता है, यदि मृत अहंकार बीच में दखल न करे तो। प्रश्नकर्ता : दो व्यक्ति आमने-सामने हो, एक ने दादा का ज्ञान लिया है तो वह खुद की प्रकृति को सहज करता जाता है, इस तरह से ज्ञान में रहकर, पाँच आज्ञा का पालन करके, लेकिन सामने वाला वह व्यक्ति, जिसने दादा का ज्ञान नहीं लिया है, उसकी प्रकृति कैसे सहज होगी? दादाश्री : नहीं, उससे कुछ लेना-देना नहीं है। प्रश्नकर्ता : अब उसकी प्रकृति तो सहज नहीं होगी लेकिन क्या हमें उससे कोई दिक्कत आएगी? दादाश्री : अपनी तो, ये जो पाँच आज्ञाएँ हैं न, वे आपके लिए सभी तरह से सेफसाइड है। अगर आप उनमें रहोगे न, तो कोई भी आपको परेशान नहीं करेगा, बाघ-सिंह कोई भी। बाघ को जितने समय तक आप शुद्धात्मा के रूप से देखोगे, उतने समय तक वह अपना पाशवी धर्म, पशु योनि का जो धर्म है, उसे भूल जाएगा। यदि वह अपना धर्म भूल गया तो फिर कुछ नहीं करेगा। प्रश्नकर्ता : अर्थात् सामने वाले में शुद्धात्मा देखने से उसमें कोई परिवर्तन आता है क्या? दादाश्री : ऑफ कोर्स (पक्का) इसीलिए मैं कहता हूँ न कि घर
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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