SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सहजता के लोगों को 'शुद्धात्मा' रूप से देखो। कभी देखा ही नहीं न! आप घर में घुसते ही बड़े बेटे को देखते हो तो आपकी दृष्टि में ऐसा कुछ नहीं रहता है। बाहर की दृष्टि से तो, 'कैसे हो, कैसे नहीं', सबकुछ करते हैं लेकिन यदि भीतर में कहो कि, 'साला नालायक है', तो इस प्रकार से देखने पर उसका असर होगा और यदि 'शुद्धात्मा' देखागे तो उसका भी असर होगा। यह संसार सारा असर वाला है। यह इतना ज़्यादा इफेक्टिव है न कि बात मत पूछो। जब हम विधि करते हैं न, तब हम ऐसा ही करते हैं, असर डालते हैं, विटामिन डालते हैं इसलिए ये शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं। वर्ना, शक्ति कैसे मिलती? मैं अनंत जन्मों की कमाई लेकर आया हूँ और आप यों ही राह चलते आ गए। प्रश्नकर्ता : आप ने कहा कि हम शुद्धात्मा को शुद्धात्मा के रूप में देखते हैं। भीतर में ये शुद्धात्मा तो निर्दोष ही हैं... दादाश्री : वे तो भगवान ही हैं। प्रश्नकर्ता : लेकिन हमें उसकी प्रकृति भी निर्दोष दिखाई देती है। दादाश्री : हाँ, वह प्रकृति निर्दोष दिखनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : अंत में प्रकृति भी निर्दोष दिखाई दे, जब दोनों निर्दोष दिखाई देंगे तब सहजता आ जाएगी? दादाश्री : हाँ, अपना यह मार्ग तो वहाँ तक का है, कहते हैं कि आप में कपट हो, उसे भी देखो। जबकि क्रमिक मार्ग में तो कपट चलता ही नहीं न! अहंकार को ही बिल्कुल शुद्ध करते रहना पड़ता है, वहाँ नहीं चलता। अर्थात् इस तरह से करते-करते यदि दो-तीन जन्मों में भी पूरा हो जाए तब भी बहुत हो गया न! अरे! यदि दस जन्मों में हो तब भी क्या नुकसान हो जाएगा? लेकिन कोई दोषित नहीं है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy