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________________ सहजता योग रहता है। हाथ ऊँचा-नीचा करे फिर भी हर्ज नहीं है, वह टेढ़ा हो जाए तब भी हर्ज नहीं, नहीं करे तब भी हर्ज नहीं। लेकिन जो खुद बुद्धि लगाकर ऐसा कहे कि यह मुझ से नहीं होगा तो वहाँ पर अहंकार है। सहज बनना है। ___ शुद्धात्मा बनकर रहो व्यवहार में अगर कोई व्यक्ति जेल में से छूटकर प्रधानमंत्री बन जाए तो प्रधानमंत्री बनने के बाद वह दिन-रात यह नहीं भूलता कि 'मैं प्रधानमंत्री हूँ', नहीं भूलता न? वह नहीं भूलता इसलिए वह काम में भी नहीं चूकता। कोई अगर प्रश्न पूछे न, तो वह ऐसा समझकर ही जवाब देता है कि 'मैं प्रधानमंत्री हूँ'। इसी प्रकार हम शुद्धात्मा बन गए हैं न, तो हमें भी, 'मैं शुद्धात्मा हूँ,' ऐसा समझकर ही जवाब देना है। जिस रूप बन चुके हैं, उस रूप का है यह। समझ जाओ। बाहर कर्म के उदय ज़ोर मारें तो वह अलग बात है। वे तो प्रधानमंत्री के भी ज़ोर मारेंगे। कर्म के उदय से कोई पत्थर मारता है, कोई गालियाँ देता है। वैसे सभी कर्म के उदय तो उनके भी हैं न, लेकिन जिस प्रकार वे प्रधानमंत्री के रूप से अपना फर्ज़ निभाते हैं, उसी प्रकार से हमें भी शुद्धात्मा का फर्ज निभाना पड़ेगा। इससे वह यह नहीं भूल जाता कि 'मैं चंदूभाई हूँ'। ऐसा भूलने से चलेगा क्या? सबकुछ लक्ष में ही रहता है न? शुद्ध स्वरूप से देखने पर, प्रकृति होती है सहज प्रश्नकर्ता : यदि सामने वाले के साथ एडजस्ट होना हो तो उसमें शुद्धात्मा ही देखना चाहिए न? अगर हम शुद्धात्मा के रूप से देखेंगे तभी एडजस्ट हो सकेंगे न? दादाश्री : हाँ! और क्या? जो आज्ञा का पालन करते हैं, वे एडजस्ट हो ही जाते हैं। आज्ञा पालन करो और शुद्धात्मा देखो, उसकी फाइल को भी देखो। रिलेटिव को और रियल को, दोनों को देखो। प्रश्नकर्ता : खुद की प्रकृति को, सामने वाले की प्रकृति के साथ एडजस्ट करवाने के बजाय अब, यदि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और सामने वाले
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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