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________________ आज्ञा का पुरुषार्थ बनाता है सहज करते जाते हैं और जैसे-जैसे अपना भाव पक्का होता जाता है, वैसे-वैसे और भी ज़्यादा आज्ञा में रह पाते हैं । दादाश्री : और भी ज़्यादा रह पाते हैं । अपने ज्ञान में, अक्रम विज्ञान में, सामान्य रूप से चौदह साल का कोर्स है। उसमें जो बहुत कच्चे होते हैं न, उन्हें ज़्यादा समय लगता है और जो बहुत पक्के होते हैं, उन्हें ग्यारह साल में हो जाता है, जैसे निष्ठा बढ़े वैसे लेकिन चौदह साल में सहज हो जाता है । मन-वचन-काया भी सहज हो जाते हैं । ४१ आप डखोडखल (दखलंदाज़ी) नहीं करूँ ऐसी शक्ति दीजिए', चरण विधि में रोज़ बोलते हैं न, तो लोगों को उसका अच्छा परिणाम मिलता है लेकिन यदि वह जानता ही न हो कि दखलंदाज़ी नहीं करनी है, तो उससे बार-बार दखलंदाज़ी हो जाती है और फिर पछतावा होता । वह कैसा है ? जैसे कि 'कल्याण हो' ऐसे भाव हमने किए हों तो उसका असर होता है और यदि ऐसा कुछ भी नहीं बोलें हो तो वैसा असर नहीं होगा। उससे उल्टे परिणाम आते हैं। ठीक से अच्छे नहीं आ I शुद्ध उपयोग से बनता है सहज ये चंदूभाई अलग हैं और आप शुद्धात्मा अलग हो, ऐसी जागृति रहनी चाहिए। फिर अगर सामने वाला व्यक्ति उल्टा बोले, टेढ़ा बोले तब भी हमारे लक्ष में से यह नहीं जाना चाहिए कि वह शुद्धात्मा ही है। क्योंकि वह जो बोल रहा है, वह अपना उदय कर्म बोल रहा है। उस उदय कर्म का आमने-सामने लेन-देन है। यानी कि पुद्गल का लेन-देन है। इससे उसके शुद्धात्मा में कुछ बदलाव नहीं होता। यानी खुद को शुद्ध उपयोग रखना चाहिए और सामने वाले को भी शुद्ध देखें, उसे शुद्ध उपयोग रखा कहा जाएगा। खुद ने एवरीव्हेर (सभी जगह) शुद्ध देखा, उसे शुद्ध उपयोग और उसी को समत्व योग कहते हैं । समत्व योग को प्रत्यक्ष मोक्ष कहा गया है। हमें निरंतर समत्व योग रहता है । दखलंदाजी दिखाई दे तो भी समत्व
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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