SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ON mm ६५ अंतर, समझने और सोचने में ६२ कर्म बंधन किससे? निरालंब होने पर, प्रज्ञा पूर्ण क्रियाकारी ६३ जहाँ देहाध्यास छूटा वहाँ सहजता ९२ मन वश होता है, ज्ञान से ....तब आती है सहज दशा मन वश रहने की निशानी [७] ज्ञानी प्रकाशमान करते हैं अनोखे सभी का मन वश रहता है, ज्ञानी को ६६ प्रयोग साहजिक वाणी, मालिकी बगैर की ६७ संसार, वह अहंकार की दखल ६८ अंत:करण की शुद्धि के साधन ९४ जितना सहज उतनी समाधि ६९ दादा करवाते हैं प्रयोग सहजता के लिए ९५ रक्षण से रुका है, सहजपना ६९ एटिकेट निकले तो हो जाए सहज ९६ अपमान करने वाला उपकारी ७० गरबा से होती है प्रकृति सहज ९७ मान में नुकसान-अपमान में फायदा ७० डर या संकोच रहित, वह सहज ९८ जागृत की दृढ़ता के लिए ७२ पोतापने से हो गई जुदाई किसी के अहम् को दुभाना नहीं ७२ सहजता के लक्षण १०० तब आएगा हल ७३ वह चिढ़ बनाती है असहज १०० उन रोगों को निकालने की कला १०१ [६] अंत:करण में दखल किसकी? हल लाओ ऐसे १०२ बुद्धि करवाती है असहजता ७५ प्रकृति सहज होने के लिए... १०४ करो डिवैल्यू, एक्स्ट्रा बुद्धि की ७५ [८] अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न समझ समाती है बुद्धि की दखल ७७ बुद्धि की दखल से रुका है आनंद ७७ दशा परेशानी है विपरीत बुद्धि के कारण ७८ बाधक अहंकार, नहीं कि संसार १०६ बुद्धि के उपयोग से बनते हैं कॉज़ेज़ ७९ देह रूपी कारखाने को चलाता है... १०६ नहीं मानना, बुद्धि की सलाह को ८० क्या करना चाहिए और क्या नहीं? १०७ जहाँ इमोशनल वहाँ असहजता ८० व्यवस्थित को समझने से प्रकट... ११० जहाँ ज्ञाता-दृष्टा वहाँ सहजता ८१ कर्तापना छूटने पर खिलता है दर्शन १११ साहजिक का काम होता है सरल ८३ ऐसे दिखाई दिया व्यवस्थित ११२ सूझ से होता है निकाल सहज ८४ वैल्यूएशन (कीमत) किसकी? ११३ बुद्धि या प्रज्ञा, डिमार्केशन क्या? ८४ ज्ञानी हमेशा अप्रयत्न दशा में _११३ अंत:करण, वह पिछला परिणाम सहज योग प्राप्त करने का तरीका ११५ अहंकार के हस्ताक्षर के बगैर कुछ... ८६ आदर-अनादर नहीं, वह सहज ११६ अहंकार से चिंता, चिंता से... ८६ लगाम, कर्तापना की ११७ सभी जीव हैं, आश्रित ८६ सहज होने के लिए लगाम छोड़ दो ११८ डिस्चार्ज होता अहंकार... ८७ व्यवस्थित का अनुभव होने के लिए... ११८ कर्ताभाव से भव बंध जाता है __ करो एक दिन के लिए यह प्रयोग १२० जहाँ सहज भाव वहाँ व्यवहार आदर्श ८८ ज्ञान समझकर, रहना जागृत १२१ विकृति से असहजता जानो व्यवहार को उदय स्वरूप १२३ एकता मानी है अहंकार ने आवश्यक क्या? अनावश्यक क्या? १२४ जो सहज उदय हुआ है वह सहज... ९० सहजता की अंतिम दशा कैसी? १२६ ० ८५ 5 W 37
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy