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________________ rm 339 0 अनुक्रमणिका सहजता [१] सहज 'लक्ष' स्वरूप का, अक्रम जहाँ इफेक्ट को आधार, वहाँ कॉज़ ३० यहाँ प्राप्त होता है, 'स्व' का साक्षात्कार १ ज्ञाता-दृष्टा रहने से बनता है सहज ३१ जो सहज रूप से होता रहे, वह है... २ खेंच-चिढ़-राग, बनाते हैं असहज सहज रूप से बरतता है लक्ष, शुद्धात्मा... ३ 'देखने वाले' को नहीं है, खराब... नहीं है यह रटन, शुद्धात्मा का ४ 'चंदू' उदय में, 'खुद' जानपने में जहाँ प्रयत्न वहाँ अनुभव नहीं पुरुषार्थ, तप सहित सहज ध्यान, वह है केवल दर्शन जान लिया तो पहुँच ही पाएगा आत्म दृष्टि की जागृति डीकंट्रोल्ड प्रकृति के सामने... दिव्यचक्षु के उपयोग से... ७ प्रकृति विलय होगी 'सामायिक' में शद्ध सामायिक की कीमत ८ बिफरी हुई प्रकृति सहज होने से... ३६ यह अभ्यास बनाता है सहज सहज जीवन कैसा होता है? ३६ जहाँ कर्ता और दृष्टा अलग, वहाँ... ९ जहाँ संपूर्ण सहज, वहाँ बने भगवान ३७ शुद्ध उपयोग, वही पुरुषार्थ निरालंब बनाती है पाँच आज्ञा ११ [४] आज्ञा का पुरुषार्थ बनाता है सहज [२] अज्ञ सहज - प्रज्ञ सहज अब आज्ञा का पालन सहज बनने... ३९ सहज दशा की लिमिट ४० वह सहज भी प्राकृत सहज १३ शुद्ध उपयोग से बनता है सहज एक्जेक्ट सहजता, लेकिन अज्ञान... १४ शुद्धात्मा बनकर रहो व्यवहार में अंतर, अज्ञ सहज और प्रज्ञ सहज में १५ __ शुद्ध स्वरूप से देखने पर, प्रकृति.... जागृति के स्टेपिंग १६ यदि 'व्यवस्थित' को समझे, तो... जितना कषाय उग्र, उतना असहज १७ जहाँ दखल चली गई वहाँ प्रकृति... ४६ अहंकारी विकल्पी : मोही साहजिक १९ साहजिक दशा का थर्मामीटर अज्ञ सहज - असहज - प्रज्ञ सहज २० जहाँ समभाव से निकाल वहाँ सहज ४९ उदयाकार, वह उल्टी साहजिकता २१ चलना ध्येय के अनुसार, मन के... ५१ आज्ञा पालन में दखल किसकी? [३] असहज का मुख्य गुनहगार कौन? पूर्व कर्म के धक्के... जितना खुद ज्ञान में उतनी ही प्रकृति.. २२ आज्ञा का फ्लाय व्हील इसमें राग-द्वेष किसे? २२ डिग्री बढ़ने का अनुभव असहजता, राग-द्वेष के स्पंदन से... २३ ___ आज्ञा रूपी पुरुषार्थ : स्वाभाविक... ५४ ज्ञान के बाद प्रतिष्ठित आत्मा निकाली २३ [५] त्रिकरण ऐसे होता है सहज दखल होने की वजह से असहज २४ यदि 'व्यवहार आत्मा' सहज, तो... २५ इफेक्ट में दखल नहीं, वही साहजिक ५६ असहजता के लिए ज़िम्मेदार कौन? २६ अनुभव पूर्वक की सहजता ५७ सहजता में पहला कौन? २७ ...बाद में मन-वाणी-वर्तन डिस्चार्ज ५७ ज्ञानी, प्रकृति से अलग २८ जहाँ निर्तन्मयता वहाँ निरोगिता प्रकृति में मठिया या उसका स्वाद? २८ प्रिकॉशन लेना या नहीं? प्रकृति को रचने वाला कौन? २९ सोचना, वह मनोधर्म अलग रहकर देखे तो साहजिक ३० सहज भाव से व्यवहार 36
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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