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________________ संसार की क्रिया हो रही है उसमें कोई हर्ज ही नहीं है । उसमें जो चंचलता उत्पन्न होती है, जो साहजिकता टूटती जाती है, उससे कर्म बंधते हैं। इस ज्ञान के बाद बाहर की क्रिया अपने आप होती है। खुद की ज़रा भी दखल नहीं रहती । इससे सहजता रहती है । यह चंचलता चली गई, उसे ही साहजिकता कहते हैं। नए कर्म क्या बाह्य प्रकृति के द्वारा होते हैं ? नहीं, वे तो अज्ञान दशा में खुद के जीवित अहंकार और आज की समझ और ज्ञान पर आधार रखते हैं। उससे कर्म उल्टे या सीधे बंध जाते हैं और उसके बाद प्रकृति हमें, उनके फल स्वरूप से ऐसे संयोगों में रखती है । बंधे हुए कर्म को छोड़ने के लिए किसी की ज़रूरत तो पड़ेगी न? इसलिए प्रकृति की बाह्य क्रिया तो होगी ही, वह क्रिया कर्म से छूटने के लिए है। उसके लिए डिस्चार्ज अहंकार चाहिए, लेकिन वह कर्म नहीं बाँध सकता। खुद, खुद के आत्मा के भान में आ गया, कर्तापना छूट गया उसके बाद उदय स्वरूप ही रहता है, वह अपने आप चलता है। यानी यदि देहाध्यास चला गया तो देह, देह के काम में और आत्मा अपने काम में, वही सहज दशा है I ज्ञान के बाद जीवित अहंकार चला जाता है, उसके बाद डिस्चार्ज अहंकार भी खत्म हो जाता है। उसके बाद देह क्रिया करती है। वह बिल्कुल सहज क्रिया कहलाती है । उस समय आत्मा भी सहज, दोनों सहज। यदि पुद्गल में दखलंदाजी नहीं हो तो साफ होता ही रहता है । जैसे कि एन्जिन में कोयला और सबकुछ भरकर रखा हो और यदि ड्राइवर नहीं हो तो भी वह चलता ही रहता है, ऐसा इसका स्वभाव है लेकिन यदि बीच में दखल करने वाला बैठा हो तो खड़ा रखेगा, चालू करेगा। दखलंदाज़ी करने वाले कौन हैं ? अज्ञान मान्यताएँ और भूलचूक (दोष)। [7] ज्ञानी करवाते हैं अनोखे प्रयोग पढ़े-लिखे बुद्धिशाली जब इकट्ठे होते हैं तो 'दादा भगवान के 24
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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