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________________ कर्म चार्ज करता है। उसी से ये सारी उलझनें हैं। मनुष्य अहंकार का उपयोग करके अधोगति बाँधते हैं। अहंकार, वह तो घोर अज्ञानता है। ज्ञान प्राप्ति के बाद जिससे संसार उत्पन्न हुआ था, वह अहंकार चला गया लेकिन यह डिस्चार्ज अहंकार खाली करना बाकी है। जो क्रोधमान-माया-लोभ भरे हुए हैं, वे डिस्चार्ज अहंकार से खाली होते जाते हैं। स्थूल देह में रहा हुआ और सूक्ष्म अंत:करण का अहंकार, वह लटू के जैसा है, डिस्चार्ज है, वह बाधक नहीं है। जो सूक्ष्मतर, पोतापj (मेरापन) का अहंकार है, वह दखल करने वाला है। वह चला जाए तो सहज हो जाएगा। अहंकार अंधा है, वह काम को पूरी तरह से सफल नहीं होने देता और अगला जन्म बाँधता है। यह अज्ञान दशा में जो भी क्रिया करता है, उसमें 'मैं करता हूँ', वह भान सजीव अहंकार है। ज्ञान दशा में खुद को सिर्फ निश्चय करना है, उसके बाद व्यवस्थित काम पूरा करवाएगा। लेकिन खुद 'मैं करता हूँ, मेरे बगैर कोई नहीं कर सकता' ऐसा कहेगा तो सबकुछ बिगाड़ देगा। प्रत्येक जीवित चीज़ में आत्मा सहज स्वभाव का होता है और प्रकृति भी सहज स्वभाव में होती है। मनुष्य में बुद्धि और अहंकार ने दखल करके प्रकृति को विकृत कर दिया है। विकृत प्रकृति के कारण आत्मा में विकृत का फोटो दिखाई देता है। उसके बाद आत्मा भी (व्यवहार आत्मा) विकृत हो जाता है। जब नींद आती है तब ज़बरदस्ती जागता है, इस तरह से असहज होता है। सिर्फ, मनुष्य को ही सहज होने की ज़रूरत है। ये क्रोध-मान-माया-लोभ, अहंकार ये संयोगों के दबाव से, अज्ञानता से, अंधकार की वजह से उत्पन्न हुए हैं। जो ज्ञान होते ही उजाले से, अपने आप सहजासहज बंद हो जाए ऐसा है। बाकी, चाहे कितने भी कष्ट सहन करे तो भी यह वंशावली खत्म नहीं होती। खुद विकल्पी, अपने आप निर्विकल्पी किस तरह से हो सकेगा? यदि मुक्त पुरुष की शरण में जाएगा तो सहज रूप से काम हो जाएगा। 23
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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