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________________ दोनों का ज्ञाता-ज्ञेय का संबंध रहना चाहिए। पाँच इन्द्रियों के धर्म को जानते रहना है और तभी मन की, वाणी की और शरीर की सहजता आती जाएगी। जब ऐसी सहजता आ जाएगी तब पूर्णाहुति कहलाएगी। देह सहज हो गया, उसका मापदंड क्या है? तब कहते हैं, यदि देह को कोई कुछ भी करे तो भी हमें राग-द्वेष उत्पन्न न हो। सहज अर्थात् स्वाभाविक। इसमें विभाविक दशा नहीं है, खुद 'मैं हूँ' ऐसा भान नहीं है। ज्ञानियों की भाषा में यदि देह सहज हो जाए तो देहाध्यास चला गया। उदय आया उतना ही करे। पोतापणुं (मेरापन) नहीं रखे। जबकि लोगों का तो अभी पोतापणुं कैसा है कि प्रकृति का रक्षण तो करते हैं, बल्कि उल्टा अटैक भी करते हैं। प्रकृति का रक्षण करना, वही पोतापणं है। उसका रक्षण करने से ही सहज नहीं हो पाता। अर्थात् अब मूल चीज़ को प्राप्त करने के बाद अहंकार का रस खींच लेना है। अपमान किसी को भी पसंद नहीं है लेकिन वह तो बहुत हेल्पिंग है। अर्थात् यदि सहज होना हो तो डिस्चार्ज क्रोध-मान-माया-लोभ, अहंकार का रक्षण नहीं करना। भरा हुआ माल तो पसंद वाला भी निकलेगा और नापसंद वाला भी निकलेगा, यदि उसे हम ‘देखेंगे' तो हम सहज होंगे। जब प्रकृति सहज होगी, दोनों सहज हो जाएँगे तब हल आ जाएगा। [6] अंत:करण में दखल किसकी? बुद्धि संसार में चंचल बनाती है, शंका करवाती है। जबकि ज्ञान से 'व्यवस्थित है' ऐसे या फिर जागृति रहे तो सहज रह सकता है। यदि ज्ञान से बुद्धि को बाजू में बिठाए तो सहज सुख बरतता है। यह मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार ये चारों ही अंत:करण के रूप में हैं, व्यवहार में उसका हर्ज नहीं लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा जो एक्स्ट्रा बुद्धि है उसका दखल है। पोतापणुं के सूक्ष्मतर अहंकार के साथ जो बुद्धि है वह एक्स्ट्रा बुद्धि है, विशेष बुद्धि है। यदि खुद तय करेगा कि इस बुद्धि की वैल्यू नहीं है, तो वह कम होती जाएगी। लोग तो बुद्धि बढ़ाने के 20
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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