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________________ उपाय खोजते हैं जबकि यह संसार ही बुद्धि का बखेड़ा है। यदि बुद्धि नहीं होती तो संसार ऐसा रहता ही नहीं । इस अक्रम ज्ञान से तो अनुपम आनंद रहता है, लेकिन बुद्धि के जाने के बाद। जो बुद्धि है वह दखल करती है । बुद्धि संसार को सुंदर बना देती है, मोक्ष में नहीं जाने देती । इस ज्ञान के बाद प्रज्ञा उत्पन्न होती है, वह ठेठ मोक्ष में ले जाती है। प्रज्ञा कहती है, जो हार्टिली व्यक्ति होगा उसे मैं हेल्प करूँगी, मोक्ष में ले जाऊँगी। अंतःकरण की बुद्धि की संसार में जितनी, जहाँ-जहाँ ज़रूरत है, उतना सहज प्रकाश वह देती ही है और संसार के काम हो जाते हैं लेकिन यदि इस विपरीत बुद्धि का उपयोग करोगे तो सर्व दुःखों को इन्वाइट (आमंत्रित) करोगे। यदि बुद्धि सम्यक् हो गई तो सारे दुःख खत्म हो जाएँगे। मनुष्य ने बुद्धि का दुरुपयोग किया, इसलिए निराश्रितपना भुगतता है। जबकि मनुष्य के अलावा करोड़ों जीव हैं, वे आश्रित हैं, सहज रूप से आनंद में हैं। यदि आत्मज्ञानी के दर्शन किए हो और वहाँ श्रद्धा बैठी हो तो सम्यक् बुद्धि उत्पन्न होती है और फिर सहज भाव से मोक्षमार्ग मिल ही जाता है। व्यक्ति जो क्रिया करता है उस क्रिया में कोई दिक्कत नहीं है, उसमें बुद्धि का उपयोग हुआ तो तुरंत ही कॉज़ेज़ उत्पन्न हो जाते हैं । बुद्धि बगैर की क्रिया सहज कहलाती है । जब सामने वाला व्यक्ति गाली देता है तब बुद्धि का उपयोग होता है, 'मुझे क्यों दी' ? इसलिए क्रोध उत्पन्न होता है, द्वेष करता है, वह कॉज़ेज़ है । आप खाते हो, वह कॉज़ नहीं है, ‘मज़ा नहीं आया, उसे खराब कहा, वह कॉज़ है या तो खुश हो गए, वह भी कॉज़ है । इस ज्ञान के बाद बुद्धि दखलंदाजी करती है, यदि ऐसा पता चल जाए तो हमें उसके पक्ष में नहीं रहना चाहिए । दृष्टि बदल लेनी चाहिए, उसकी दखलंदाज़ी के विरोध में रहना चाहिए तो वह धीरे-धीरे बंद होती 21
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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