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________________ ११४ सहजता अब, जगत् प्रयत्न में है लेकिन आप प्रयत्न में नहीं हो, आप यत्न में हो। हाँ, यह दखल हुआ है, उसे सही-गलत मान बैठे हो। अरे भाई, लेकिन आप अपनी जगह पर बैठे रहो न, आगे-पीछे किसलिए होते हो? वह सही-गलत तो पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) का होता है, उसमें कभी भी पुद्गल की वंशावली नहीं गई। पुद्गल की वंशावली कभी नहीं जाती। आपको उसकी चिंता नहीं करनी है। उनके मन में ऐसा रहता है कि पुद्गल की वंशावली चली जाएगी तो क्या होगा? अच्छे की वंशावली चली जाएगी और गलत की बढ़ जाएगी। इस पुद्गल की वंशावली कभी भी नहीं गई। ज्ञाता-दृष्टा, अक्रिय, ऐसा आत्मा है। यत्न भी नहीं होता और प्रयत्न भी नहीं होता। प्रश्नकर्ता : आपको तो आत्मा अलग ही बरतता है अर्थात् हर एक प्रदेश में सभी जगह वह अलग ही बरतता है? दादाश्री : हाँ, सभी जगह। है ही अलग, आपमें भी अलग है। प्रश्नकर्ता : है तो अलग ही, लेकिन यह बरतने की बात है न? दादाश्री : बरतना अर्थात् खुद का ज्ञान संपूर्ण रूप से है। जितना अज्ञान उतना नहीं बरतता। __प्रश्नकर्ता : लेकिन इसका अर्थ ऐसा हुआ कि उसी अनुसार पूरे शरीर में बरतता है? दादाश्री : हाँ, उसी अनुसार बरतता है। जितना बरतेगा उतना सहज। ज्ञान होने के बाद देह सहज होती है क्योंकि जहाँ क्रोध-मानमाया-लोभ खत्म हो गए वहाँ सहजता उत्पन्न होती है। प्रश्नकर्ता : सहज होना वही सब से बड़ी बात है। दादाश्री : बड़ी बात ही नहीं, अंतिम बात है! अंत में तो सहज ही होना पड़ेगा न? अंत में सहज हुए बगैर नहीं चलेगा। सहज पर से साहजिकता। सहज अर्थात् अप्रयत्न दशा। अप्रयत्न दशा से चाय आए तो हर्ज नहीं। अप्रयत्न दशा से खाना आए तो हर्ज नहीं।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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