SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा ऐसा ही करता था। घर से वहाँ जाता, यदि वहाँ दुकान बंद हो तो हम जान जाते कि आज संयोग इकट्ठे नहीं हुए। हम ऐसा सब हिसाब निकाल लेते थे। हम सब खोज कर लेते थे कि किस संयोग की कमी है ? ११३ प्रश्नकर्ता : दूसरे दिन जाओ तो, पाँच-छः लोग बाल कटवाने के लिए बैठे हो और अपने पास टाइम नहीं हो कि अभी तो पाव घंटे में मुझे वापस जाना है तो फिर वापस आ जाना पड़ता है। दादाश्री : हाँ, ऐसा होता है । इसलिए हमें तो ऐसे टाइम और सब देखते-देखते साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स सब समझ में आया कि यह संसार किस तरह से चलता है ? हमें ऐसा नहीं रहता कि आज ऐसा ही करना है। मिलता है या नहीं उतना ही देखते हैं और अगर अपने आप सहज ही मिल जाता हो तो, वर्ना कुछ नहीं। लोग इस तरह से नहीं देखते, नहीं ? तो लोग किस तरह से देखते हैं ? ' मैं वहाँ गया और वहाँ वह नहीं मिला, मेरा काम नहीं हुआ' ऐसा कहेगा । वैल्यूएशन (कीमत ) किसकी ? कितनी ही हितकारी चीजें होती हैं, यदि वह अपने आप सहज रूप से प्राप्त होती हो तो अच्छी बात है । यदि हो सके तो होने देना और नहीं हो सके तो कुछ नहीं, एकदम सहज रहना । दखल नहीं करना । जो चीज़ सहज नहीं रहने दे, उसे दखल कहते हैं । दखल करने से कितने ही जन्म बढ़ जाएँगे । इसकी वैल्यूएशन भी नहीं करना और डिवैल्यूएशन भी नहीं होने देना । व्यवहार की वैल्यूएशन नहीं करना और आत्मा की डिवैल्यूएशन न हो ऐसा देखकर व्यवहार करना । व्यवहार बगैर चलेगा ही नहीं, ऐसा नहीं बोलना । यदि कभी बोलना पड़े तो निश्चय बगैर नहीं चलेगा, ऐसा बोलना । इस विवेक को समझ लेना है। ज्ञानी हमेशा अप्रयत्न दशा में कौन ज्ञानीपुरुष कहलाते हैं ? जिन्हें निरंतर अप्रयत्न दशा बरतती है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy