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________________ ६८ सहजता दादाश्री : प्रयत्न करने से ही बिगड़ता है। 'चंदूभाई' सारे प्रयत्न करेंगे। इसे मैं टेपरिकॉर्डर क्यों कहता हूँ ? क्योंकि यह साहजिक चीज़ है। इसमें मैं हाथ नहीं डालता इसलिए फिर यह भूल बगैर की निकलती है। ऐसी कितनी ही 'टे' भरी हुई हैं और यदि आपको एक 'टेप' भरनी हो तो उलटा-सीधा कर दोगे क्योंकि साहजिकपना नहीं है। साहजिकपना आना चाहिए न? साहजिकपना लाने के लिए यदि खुद ज्ञाता-दृष्टा रहेगा तो साहजिकपना आएगा। जो कर्ता है, उसे कर्ता रहने दो और जो ज्ञाता है, उसे ज्ञाता रहने दो। 'जैसा है वैसा' होने दो तो सब ठीक हो जाएगा। इस ज्ञान का सारांश ही यह है। दोनों अपनी-अपनी फर्ज बजाते हैं। आत्मा, आत्मा की फर्ज बजाता है और 'चंदूभाई', 'चंदूभाई' की फर्ज बजाते हैं। ज्ञाता-ज्ञेय का संबध रहना चाहिए। देह किस तरफ जा रही है, देह के कैसे-कैसे नखरें हैं, वे दिखाई देने चाहिए। वाणी कठोर निकलती है या सरल निकलती है, वह भी आपको दिखाई देना चाहिए लेकिन वह भी रिकॉर्ड है, वह दिखाई देनी चाहिए। कठोर या मधुर वाणी बोलना, वे सभी वाणी के धर्म हैं और इन पाँच इन्द्रियों के धर्म, इन सभी धर्मों को जानते रहना है। इसी काम के लिए यह मनुष्य जन्म है। वे सभी धर्म क्या कर रहे हैं, उन्हें जानते रहना है। अन्य बातों में नहीं पड़ना है। तभी मन की सहजता, वाणी की सहजता, देह की सहजता आती है न! वह उसका फल है। देहाध्यास छूटते-छूटते सहजता आती है। जब सहजता आती है तब पूर्णाहुति कहलाती है क्योंकि आत्मा तो सहज ही है और इस देह की सहजता आ गई। संसार, वह अहंकार की दखल देह सहज अर्थात् स्वाभाविक, इसमें अपना दखल नहीं रहता। जिसमें अहंकार का दखल नहीं रहता, वह देह सहज कहलाती है। यह हमारी देह सहज कहलाती है अर्थात् आत्मा सहज ही है। अहंकार का
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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