SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिकरण ऐसे होता है सहज दादाश्री : लेकिन स्त्रियों का ही मन वश करना आसान नहीं है । पुरुषों का तो आसान है, स्त्रियों का तो बहुत कठिन है । क्योंकि जहाँ पर मन को वश कर सकें ऐसे हो, वहाँ पर ही वे बैठ सकती हैं, वर्ना नहीं बैठ सकती। प्रश्नकर्ता : आपको यह सब पता चल जाता है ? दादाश्री : सबकुछ पता चल जाता है कि इस व्यक्ति का मन संपूर्ण रूप से वश में रहता है। संपूर्ण रूप से मन वश रहना अर्थात् क्या कि हम जो कुछ भी कहें, उनका मन हमारे कहे अनुसार एडजस्ट हो ही जाता है ! साहजिक वाणी, मालिकी बगैर की ६७ प्रश्नकर्ता : साहजिक वाणी अर्थात् क्या ? दादाश्री : जिसमें किंचित्मात्र अहंकार नहीं, वह। मैं इस वाणी का एक सेकन्ड भी मालिक नहीं बनता अर्थात् हमारी यह वाणी साहजिक वाणी है। प्रश्नकर्ता : हमारी वाणी में तो साहजिकता नहीं है । यदि उसे छूट दे देते हैं तो झगड़ा करती है और ब्रेक लगाते हैं तो अंदर तूफान करती है। दादाश्री : आपको कुछ नहीं करना है । छूट भी नहीं देना है और ब्रेक भी नहीं लगाना है। वह तो, जब खराब बोला जाए तब हमें 'चंदूभाई ' से ऐसा कहना है, कि 'चंदूभाई, यह शोभा नहीं देता। आपने अतिक्रमण क्यों किया ? प्रतिक्रमण करो।' 'हमें' तो अलग ही रहना है । कर्ता 'चंदूभाई' है और 'आप' ज्ञाता - दृष्टा हो, दोनों का व्यवहार ही अलग है। प्रश्नकर्ता : ज्ञाता-दृष्टा रहने से 'चंदूभाई' का काम ठीक से, एक्ज़ेक्ट होता है ? दादाश्री : बहुत अच्छा, एक्ज़ेक्टली हो जाता है। प्रश्नकर्ता : कुछ भी प्रयत्न किए बगैर एक्ज़ेक्टली हो जाता है ?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy