SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिकरण ऐसे होता है सहज दखल समझ गए आप? अहंकार चला गया अर्थात् सब चला गया। यह सारा संसार इगोइज़म की वजह से है। सारा इगोइज़म का ही आधार है। दूसरा कुछ भी बाधक नहीं है, यह इगोइजम बाधक है। 'मैं', 'मैं'! जितना सहज उतनी समाधि प्रश्नकर्ता : वह तो, आपने सहज देह का प्रकार बताया लेकिन वह सहज कब होती है? दादाश्री : सहज तो आपको यह जो ज्ञान दिया है न, यदि वह ज्ञान में परिणाम पाकर ये सभी कर्म कम हो जाएँगे तो खुद सहज होता जाएगा। अभी सहज हो रहा है लेकिन अंश रूप से हो रहा है। वह अंश-अंश सहज होते-होते संपूर्ण रूप से सहज हो जाएगा। अभी सहज के तरफ ही जा रहा है। देहाध्यास छूटने से सहज की तरफ बढ़ रहा है इसलिए अभी सहज ही हो रहा है। जितने अंश सहज हो जाएगा उतने अंश समाधि रहेगी। अगर देह को कोई कुछ भी करे तो भी हमें राग-द्वेष नहीं होते। यह हमारी देह सहज कहलाती है। आपको अनुभव करके देख लेना है। हमें राग-द्वेष नहीं होते इसलिए हमारी देह सहज है। अतः सहज किसे कहेंगे, वह समझ लेना है। सहज अर्थात् स्वाभाविक। कुदरती रूप से स्वाभाविक। उसमें विभाविक दशा नहीं रहती। 'खुद मैं हूँ' ऐसा भान नहीं रहता। रक्षण से रुका है, सहजपना प्रश्नकर्ता : देहाध्यास कब जाता है? दादाश्री : अगर कोई जेब काट ले और आपको कोई असर न हो तो देहाध्यास चला गया। देह को कोई कुछ भी करे और यदि खुद उसे स्वीकार ले तो वह देहाध्यास है। मुझे क्यों किया?' तो वह देहाध्यास है। ज्ञानियों की भाषा में देह सहज हो गई अर्थात् देहाध्यास चला गया। प्रश्नकर्ता : ज्ञान के बाद वह साहजिकता कैसी रहती है ? उसे समझाइए न!
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy