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________________ गधा पूरी रात उछल कूद करता था और आसपास वाले लोगों की नींद बिगड़ जाती थी । बुद्धि का ऐसा - ऐसा दुरुपयोग किया है। उसके लिए खूब पछतावा और प्रतिक्रमण भी किए हैं। पंद्रह साल की उम्र में बीड़ी पीने की आदत पड़ गई थी, सिगरेट पीने की। अंत में जलती हुई सिगरेट फेंकने की आदत थी । एक बार तो किसी शादी में यों सिर पर से सिगरेट उछालकर फेंकी तो वहाँ जो मंडप बाँधा हुआ था, उसमें नीचे कढ़ाई में कुछ तला जा रहा था। ऊपर से मंडप जल गया और बहुत बड़ा धमाका हुआ। फिर ऐसा करना छोड़ दिया। लेकिन उस बात का भी बहुत पश्चाताप हुआ कि 'हमारी वजह से ऐसा कैसा हो गया ?' दादाश्री ने खुद के जीवन की कहानी बताते हुए खुद की सभी भूलें बता दी हैं। जब उन्हें खुद की गलती समझ में आईं तब उन्होंने अपनी उन सब गलतियों का ज़बरदस्त पछतावा और प्रतिक्रमण किए। लेकिन इतना ही नहीं सत्संग में सब लोगों के सामने जब ऐसी कोई बात निकलती तो ज्यों का त्यों बता देते थे । ग्यारह साल की उम्र में किसी की बारात में नडियाद गए थे I तो वहाँ तीनपत्ती खेलते हुए ठगे गए और पंद्रह रुपए हार गए। जहाँ मज़े करने की जगह होती, वहाँ ठगे जाते थे और उस अनुभव पर से फिर से वह भूल नहीं करते थे । ठगे जाने के बाद पूरी जिंदगी के लिए प्रण कर लिया कि ऐसा काम फिर कभी नहीं करूँगा । 'बचपन में ग्यारह साल की उम्र में एक मित्र के घर पर जब उसके माता-पिता नहीं होते थे, तब वह घर की दूसरी मंजिल से आम नीचे फेंकता था और हम आम पकड़ लेते थे । फिर हम सब बगीचे में जाकर खाते थे। किसी के पेड़ के आम तोड़कर खाते थे, ऐसी चोरियाँ की थीं। उसके लिए फिर कितने ही पछतावे करके उसे साफ किया ।' बचपन में तेरह साल की उम्र में एक सोने की अँगूठी चोरी की थी। अरहर के पौधे के कराठियों के गट्ठर किसी से खरीदे थे। फादर ने हमें भेजा कि गिनकर गट्ठर ले लेना । तो उस हाट में नौकर 32
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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