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________________ 186 ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) प्रश्नकर्ता : हाँ, वह ठीक है । जुनून आ जाए तो क्या नहीं कर सकते ? दादाश्री : एक तो अज्ञानता और फिर जुनून आ गया, इसलिए सबकुछ बाहर फेंक दिया। तब मुझे हँसी आ गई। अंदर सभी मेहमान बैठे थे । इसलिए मैंने कहा, 'अब क्या करें ?' तब कहा, ‘अब क्या करें ? पिछले दरवाज़े से जाकर कहीं होटल से चाय ले आ'। मैंने कहा, ‘होटल से नहीं लानी चाहिए। मैं अभी स्टोव लेकर आता हूँ पड़ोस में से'। फिर मैंने कहा, 'अब क्या कप-प्लेट नहीं लाने पड़ेंगे?' तो थोड़ी देर बाद कहा, 'लाने तो पड़ेंगे न !' यही झंझट ! तब मैंने कहा, 'ये कप-प्लेट फोड़ दिए, नहीं फोड़ते तो अच्छा रहता न!' तो कहा, ‘हाँ, वह तो गुस्से में फेंक दिए' । बोलो अब, उसका क्या... ऐसा है यह जगत् ! सारे कप-प्लेट फोड़ दिए। क्या वह उन्हें शोभा देता ? स्टोव भी बाहर फेंक दिया, कप-प्लेट सभी फेंक दिए और ऐसा सब! इस तरह इंसान चिढ़ता है और सिर्फ चिढ़ ही पैदा करता है। तब चाय बनाने वाले के मन में दहशत घुस जाएगी न। दो बादाम की (ज़रा सी) चाय और कितना बड़ा तूफान ? और भाभी भी क्या करतीं उसमें ? स्टोव खराब हो तो वे क्या करतीं ? प्रश्नकर्ता : लेकिन वे ऐसा कुछ समझते नहीं थे न ! दादाश्री : नहीं, लेकिन ऐसे कैसे मेहमान कि भगवान से भी बढ़कर? मेहमान से कहना चाहिए कि ' भाई स्टोव नहीं जल रहा है। आपमें से कोई होशियार हो तो ज़रा जलाकर दो न !' उसमें क्या कुछ बिगड़ जाता ? अपना भाव है उन्हें चाय पिलाने का लेकिन उन्हें ऐसा नहीं रहा। मेहमानों के सामने इज़्ज़त रखने के लिए यों फेंका । इज़्ज़तदार इंसान को क्या कभी कपड़े पहनने पड़ते होंगे ? यह सब किसलिए ? इज़्ज़त बचाने के लिए कपड़े पहनते हैं । मैं बाहर सब देखकर आया हूँ । ये सब नक्शे मैं यों ही भूल जाऊँगा क्या ? ये नक्शे क्या भूल सकते हैं ? ये सभी नक्शे देखे हैं न ?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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