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________________ [7] बड़े भाई 187 प्रश्नकर्ता : हाँ, देखे हैं। दादाश्री : तो स्टोव को बाहर पड़ा हुआ देखा, और जले हुआ भी देखा! मज़ा आता है, हँसना भी आता है याद करके। प्रश्नकर्ता : दादा, इस तरह से फेंकने से (स्टोव का) सारा कचरा निकल जाता है कई बार। दादाश्री : हाँ, निकल जाता है, फिर जलने लगता है। हाँ, तो हमारे भाई ने ऐसा किया था लेकिन कचरा नहीं निकला। फिर हमारी भाभी ने कहा, 'वे भले ही फेंकें लेकिन आप ले आओ न, स्टोव तो ले आओ। ये कप-प्लेट गए तो गए लेकिन स्टोव तो लाना पड़ेगा न?' उसे ठीक करवाकर फिर काम में लेते थे न! सब यों ही थोड़े ही मुफ्त में दे देते हैं ? सात रुपए लेते थे पीतल के स्टोव के। प्रश्नकर्ता : उन दिनों सात रुपए आसान नहीं थे। दादाश्री : हाँ, आसान नहीं थे। बहुत अहंकारी इसलिए पंगत में नहीं बैठते थे प्रश्नकर्ता : लोग उनसे घबराते हों, ऐसी कोई घटना बताइए न! दादाश्री : मुहल्ले में जैनों के घर थे न, तो मुहल्ले में जब सेठों के वहाँ पर खाने के लिए जाना होता था न, तब सेठ घबराते थे। पूरा मुहल्ला घबराता था। 'मणि भाई साहब, मणि भाई साहब' करते थे। आप जैसे वे सभी सेठ क्या करते थे? 'मेरी बेटी की शादी है तो आपको आना है मणि भाई,' वे आकर ऐसा कह जाते थे। क्योंकि! मुहल्ले में थे इसलिए लोगों को खाना खिलाना पड़ता है न। जान-पहचान है इसलिए खाना तो खिलाना पड़ता था न! शादी के समय हम दोनों भाईयों को खाने पर बुलाते थे लेकिन मेरे बडे भाई का रिवाज़ क्या था, जानते हो आप? मेरे बड़े भाई क्या कहते थे? 'हाँ, लेकिन हम कहीं भी किसी के यहाँ खाना खाने नहीं जाते हैं। क्योंकि हमारे बड़े भाई का ऐसा नियम था कि 'खुले सिर मैं खाना खाने नहीं बैलूंगा। लोग खाने को बुलाते थे
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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