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________________ कि 'विधि मत करवाना'। और उस साधु से भी कह दिया कि “मैं तो 'राम की चिट्ठी' लेकर आया हूँ।" __ [1.2] निर्दोष ग्राम्य जीवन मदर ने आठ साल तक घी नहीं खाने का प्रण लिया था और हमेशा अंबा माँ की भक्ति करते थे इसलिए उनका नाम अंबालाल पड़ा। बचपन में गलगोटा (गेंदे) जैसा चहेरा था इसलिए प्यार से उनका नाम 'गलो' रखा था। उनके ज़माने में कपड़ों की कमी थी, तो बचपन में नौ-दस साल के होने तक तो कपड़े भी नहीं पहनाते थे इसलिए छोटे बच्चों में विषय-विकार जागृत ही नहीं होते थे। चौदह-पंद्रह साल के होने के बाद भी गाँव की लड़कियों को बहन कहते थे। यानी कि कोई खराब विचार ही नहीं। भोली-भद्रिक प्रजा, निर्दोष ग्रामीण जीवन जीते थे। बचपन में क्या-क्या हुआ था, उसका आँखों देखा वर्णन उन्होंने खुद ने बताया है। मन में क्या था, किस समझ की वजह से ऐसा हो गया, उस समय वाणी और वर्तन कैसे थे, लोगों के विचार-वाणी और वर्तन कैसे थे, वह सब उस समय बचपन में ही अत्यंत सूक्ष्म रूप से नोट किया था, उसे समझ सके थे। वह सब समझकर, गाँव की तलपदी भाषा में उन्होंने अपने जीवन के प्रसंग बता दिए हैं। [1.3] बचपन से ही व्यवहारिक सूझ उच्च लोगों ने बचपन में दादाश्री को 'सात समोलियो' नामक उपनाम दिया था। यों तो जब बैल को जुताई के लिए ले जाते हैं तब समोल हल में जोता जाता है तो सात समोलिया बैल की बहुत कीमत मिलती है। वह बैल खेती बाड़ी की ज़मीन जोतने के काम आता है, कुँए से पानी की रहट खींचता है, बैल गाड़ी चलाता है, आँखों पर पट्टी बाँधकर घानी चलानी हो तो उसमें भी काम आता है। जिस तरह वह सात तरह के कामों में आता है उसी तरह अंबालाल को होता था कि 23
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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