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________________ लगता था। शुरू से ही वैभव वाली चीज़ मिलें तो अच्छी नहीं लगती थीं'। इनकी यह एक विशेषता थी बचपन से ही। सामान्य रूप से छोटे बालकों को सुख, अनुकूलता, वैभव, मौजमज़े अच्छे लगते हैं लेकिन बालक अंबालाल को यह सब अच्छा नहीं लगता था इसलिए वे हमेशा कहते थे कि, 'मेरा जीवन इस दुनिया को देखने में, ऑब्जर्वेशन में ही बीता है। मुझे संसार भोगने में कोई रुचि नहीं थी। मुझे इस जगत् की हकीकत जानने में इन्टरेस्ट था। मात्र आध्यात्मिक जानने में ही रुचि थी। संसार में मुझे कुछ भी नहीं चाहिए था। यह सुख मुझे शुरू से ही कड़वा लगता था'। दादाश्री कहते हैं कि 'मैं पूर्व जन्म से ऐसा हिसाब लेकर आया था, इसलिए ऐसे परिवार में जन्म हुआ। मूल रूप से बीज मेरा था और उनमें यह दिखाई देने की वजह से, उनकी वजह से मेरे पूर्व जन्म के प्राकृतिक गुण और संस्कार प्रकट हुए'। जिस परिवार में ऐसे ज्ञानी पुरुष का जन्म हो, उस परिवार को तो लाभ होता ही है लेकिन कितनी ही पीढ़ियों को यह लाभ मिलता है ! लेकिन उसमें भी यदि कोई पहचान जाए कि, 'ये ज्ञानी पुरुष हैं', उनसे ज्ञान प्राप्त करे और आज्ञा का पालन करे तो मोक्ष का कनेक्शन मिल जाता है। वर्ना बस इतना ही है कि संसार लाभ प्राप्त होता है। उनके कुटुंब की विशेषता यह थी कि छ:-सात पीढ़ियों से किसी लड़की का जन्म नहीं हुआ था। किसी को भी साला बनना अच्छा नहीं लगता था। पूर्व काल में कोई ऐसा अहंकार किया होगा जिससे कि 'साला' शब्द सुनने से अपमान महसूस हुआ होगा। तभी से गाँठ बाँध दी होगी कि किसी का साला नहीं बनना है। ऐसा जो हुआ, वह तो पूर्व जन्म में किए हुए अहंकार के परिणाम स्वरूप हुआ होगा और उसे वह खुद अपनी कमज़ोरी के रूप में स्वीकार करते हैं। बचपन से ही उन्हें ग़ज़ब की खुमारी रहती थीं। उन्हें ऐसा रहता था कि खुद पूर्व जन्म की कोई पूँजी लेकर आए हैं। कोई साधु अगर उनसे कहता कि 'विधि करवानी पड़ेगी', तो वे खुद मदर से कहते थे 22
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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