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________________ मुझ में कुछ शक्ति हैं इसलिए मुझे सब ‘सात समोलियो' कहते हैं, इससे वे मन ही मन खुश होते थे। __ पढ़ने-लिखने वाले एक समोलियो कहलाते हैं। उसे सिर्फ पढ़ाई यानी एक ही कोर्नर अच्छा लगता है और बाकी सभी तरफ का सोचना अच्छा नहीं लगता जबकि सात समोलिया तो घर में रहकर पढ़े तब भी हिसाब लगाता रहता है कि हमारी इन्कम कितनी है, खर्चा कितना है, माँ-बाप को कितनी तकलीफ होती होगी, उनके पास यह सारा हिसाब रहता है, वे इतने विचक्षण होते हैं। लोग आमने-सामने बातें कर रहे हों तो वे समझ सकते हैं कि क्या बात कर रहे हैं! हर एक तरह से ध्यान रखते हैं। माँ-बाप की सेवा करते हैं, पैसा किस तरह से आता है, कहाँ नुकसान हो जाता है, माँ-बाप की स्थिति क्या है, इन सब बातों का उन्हें ध्यान रहता है। ऐसा सात समोलिया तो कोई ही इंसान होता है। अंबालाल जी वैसे ही थे इसलिए कहते थे न कि, 'मुझे पढ़ाई में इतना नहीं आया, मैट्रिक फेल हुआ'। पढ़ाई करना नहीं आया था लेकिन उनका ध्यान चारों तरफ रहता था। पढ़ाई में एकाग्रता नहीं रहती थी लेकिन बचपन से ही व्यवहारिक सूझ उच्च प्रकार की थी। बचपन से ऐसा मोह ही नहीं था कि चित्त कहीं चिपक जाए इसलिए बचपन में जो कुछ भी हुआ, वह उन्हें पूरी तरह से याद रहा। 'इस दिन, इस जगह पर ऐसा हुआ था,' ऐसा सब उन्हें दिखाई देता था। जीवन में, उम्र के हर एक साल में क्या हुआ, उन सब को समझ सकते थे, और बड़े होने पर भी उन्हें वह सब ज्यों का त्यों याद रहा। पूछने पर बात निकलती थी और वे सबकुछ देखकर बता सकते थे। [1.4] खेल कूद बचपन से ही अन्य बच्चों के साथ मिलकर शरारत और मस्ती करते थे। ननिहाल में जाते थे तब गाँव में तालाब में जो भैंस बैठी होती थीं, उन पर बैठ जाते थे। ननिहाल में सभी भाँजे का सम्मान करते थे, मान सहित रखते थे। खेल खेलते थे लेकिन विचारशील थे। पतंग उड़ाने में कभी भी 24
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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