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________________ [5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जागृत, माता के 149 था। हमारी बा बहुत बड़े मन की थीं, बहुत दिलदार मन की, बहुत प्रेम वालीं। वे तो बिल्कुल देवी जैसी थीं। मुझे संस्कार तो उन्होंने ही दिए थे। फिर भी उनका खुद का मन टूट गया और उस क्षण उनकी भावनाएँ चली गईं। जो कभी भी नहीं बोलीं, खुद उन्होंने मुझसे कहा, 'ये मरे अभी कहाँ से आ गए?' वे तो नोबल थीं लेकिन मुझे उनकी 'यह' नोबिलिटी अच्छी नहीं लगी। अब जिन्हें मैं सब से महान आत्मा मानता हूँ और जिन बा ने मुझे संस्कार दिए थे, वे बा इतनी अधिक मनुष्य प्रेमी थीं कि पूरी जिंदगी उसी में अर्पण की थी। जब उनका भी धीरज खो गया तो मुझे घबराहट हो गई कि ये क्या कह रही हैं ? अतः मेरे मन पर असर हो गया कि ऐसे खानदानी व्यक्ति यदि ऐसा बोल सकते हैं तो और लोगों की बिसात ही क्या? ऐसे असल खानदानी इंसान को मैंने अपनी जिंदगी में देखा था। तो मुझे हुआ कि ये भी ऐसा कह रही हैं। जो मुझे ऐसा सिखाती थीं कि 'कोई पथ्थर मारे तो मार खाकर आना लेकिन मारकर मत आना', वे भी ऐसा कह रही हैं ? उनमें भी इतनी हीनता आ गई! इसका क्या कारण है? उन्हें ऐसा विचार आया! थक गई थीं इसलिए फिर से मेहनत करने में परेशानी थी फिर मैंने पता लगाया कि, 'इन्होंने ऐसा क्यों कहा?' तो यह कि अब थक तो गई हैं और बा से बेचारे से काम तो नहीं हो पाता लेकिन उनके मन में ऐसा था कि 'हमारी बहू को अब खाना बनाना पड़ेगा, कितनी मुसीबत है!' इसलिए बेचारी बा ने ऐसा कहा। 'आज सुबह से, पूरे दिन काम करके थक गई और फिर अब यह भी करना पड़ेगा?' क्योंकि मेहमान भी ऐसे संयोगों में आए थे जब वे बेचारी थक चुकी थीं, और अब वापस बनाना पड़ेगा। अतः वे मन ही मन परेशान हो गईं और मैं भी समझ गया था कि बा और हीरा बा थक चुके हैं, तो अब कौन बनाएगा? तो मैंने कहा कि 'यदि आपसे नहीं हो पाएगा तो मैं बना लूँगा'। उनकी मदद तो करनी पड़ती न बेचारों की!
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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