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________________ 150 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) समय के आधार पर हम समझ जाते हैं न, कि अब ये तो आ गए हैं। फिर बा के मन में ऐसा हुआ कि 'अभी तो दाल भी नहीं है और कुछ भी नहीं है, जल्दी आए होते तो! हमारे खाना खाने से पहले आए होते तो दाल थोड़ा इधर-उधर करके, थोड़ा कम लेकर भी इसका हल निकाल देते'। 'थोड़ी दाल बची होती तो चावल बना देते। अब तो दोबारा दाल भी बनानी पड़ेगी। अभी दाल खत्म हो गई है। फिर दोपहर में ज़रा सोने का समय हुआ तब ये आए हैं। अब फिर से कब दाल बनाएँगे? दस बजे आए होते तो ऐसा नहीं कहते। अभी यह सब फिर से करना पड़ेगा न,' इसलिए मन में परेशानी हो गई। यानी क्या कि चावल-दाल की नहीं पड़ी थी लेकिन महेनत की पड़ी थी इसलिए मैं मन में समझ गया कि इन लोगों को महेनत नहीं करनी है। शरीर में कमजोरी आ गई है। बा ऐसे हैं कि कभी भी ऐसा नहीं कहते, लेकिन उन्होंने भी ऐसा कहा और उनके सामने तो अच्छी तरह से बात की कि 'आइए, पधारिए' आँखें भी अच्छी रखकर, लेकिन मन में था कि 'ये मरे अभी कहाँ से आ गए?' मैंने कहा 'ऐसा? क्या कहा यह?' धीरे से पूछा। वे लोग तो बाहर बैठे थे। मैंने कहा 'आपने ऐसा? आप मुझे ऐसा सिखाते हो, ऐसा शोभा नहीं देता'। तब वे तुरंत ही पलट गए। 'नहीं, कुछ भी नहीं' ऐसा कहा। तब मैं समझ गया कि इनका कोई दोष नहीं है और 'अब ये लोग थक गए हैं, मन से थक गए हैं। अन्य कोई भाव नहीं बिगड़ा है'। झटपट आसान सा खाना बना दिया, दादा ने अतः बा को उस समय मैंने कुछ नहीं कहा, उस समय मैंने लेट गो किया। वे लोग बाहर बैठे थे न! इसलिए मैंने इनसे अकेले में कह दिया, 'आप सब आराम से सो जाओ, आप ज़रा आराम करो। आज मुझे बनाने दो इन लोगों के लिए'। उसके बाद मैंने कहा, 'मैं सबकुछ कर लूँगा, आप आराम करो।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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