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________________ 148 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : अब, जान-पहचान वाले और उसमें भी खास तौर पर रिश्तेदार हों तो वे कहेंगे तो सही न, कि अभी हम खाना खाएँगे, ऐसा कहते हैं न, मज़ाक करते हैं न? तो उन्हें घर में आते देखा तो मैंने आवाज़ लगाई, मैंने कहा, 'आइए, आइए, पधारिए, पधारिए। बैठिए वहाँ पर'। तो वे आगे वाले कमरे में बैठ गए। 'अभी कहाँ से आ गए?', देखी बा की कमज़ोरी गर्मी का मौसम, सख्त गर्मी, मेरी माँ जी मेरे सामने ही खाना खाने बैठी थीं। मुझे कहा, 'ये अभी कहाँ से आ गए?' क्या कहा? प्रश्नकर्ता : ये अभी कहाँ से आ गए? दादाश्री : उन लोगों को सुनाई दे उस तरह से नहीं, लेकिन यों हावभाव पर से मैं समझ गया कि ये क्या कहना चाह रही हैं? वे लोग तो आगे वाले कमरे में कपड़े बदल रहे थे और अपने थैले रख रहे थे। उन्हें पता नहीं था कि ये क्या कह रही हैं? लेकिन मैं माँ जी के हावभाव से समझ गया इसलिए मैंने माँ जी से कहा 'बैठिए, अभी शांति रखिए'। इशारे से ऐसे किया तो वे समझ गए। हम तो वैष्णव डेवेलपमेन्ट वाले, फिर भी बा जो थीं न, वे बहुत अच्छे स्वभाव वाली थीं। हमारी बा का मन तो कभी भी, ज़रा सा भी बिगड़ा ही नहीं था न, लेकिन उस दिन बिगड़ गया! उनके मुँह से कमज़ोरी सुनी एक बार, तब ऐसा लगा कि 'इनका मन बिगड़ रहा है'। ऐसी बा तो मैंने कहीं भी नहीं देखी थीं! अड़तालीस साल उनके साथ रहा, लेकिन मुझे उनका कोई दोष दिखाई नहीं दिया। लेकिन एक ही बार उनका दोष देखा था उस क्षण कि खुद की मति से या चाहे कुछ भी हो लेकिन बा के मुँह से यह निकल गया कि 'ये मरे अभी कहाँ से आ गए!' बा ने अंदर ही अंदर कहा, वह मैंने सुन लिया। 'ऐसे खानदानी इंसान ने ऐसा कहा?' वह अच्छा नहीं लगा हमारी बा बहुत ही खानदानी थीं। बा का स्वभाव बहुत ही उमदा
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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