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________________ 116 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) अगर मिल जाए तो पाँच सौ गुना वापस दे दूं, लेकिन वह __ अभी भी खटकता है प्रश्नकर्ता : फिर पैसे वापस करने के लिए गए थे न आप? दादाश्री : हाँ, फिर उसके मालिक से एक बार पूछने गया, तो कोई नहीं मिला। दस साल बाद फिर से गया था वहाँ पर। मैंने पूछा, 'इस घर में फलाना भाई रहते थे न?' तब कहा, 'वे तो नहीं हैं, वे तो मर गए'। उसके बाद कोई ठिकाना नहीं पड़ा। वर्ना मैंने सोचा था कि उसे दस गुना पैसे दे दूंगा या बीस गुना पैसे दे दूंगा और यदि वे कहें की सौ गुना दो तो सौ गुना, पाँच सौ गुना कहें तो पाँच सौ गुना दे दूंगा। चौदह पंजे सत्तर, सात हज़ार रुपए दे दूँ उसे, लेकिन वह था ही नहीं। जब पता लगाने गया तो बाप या बेटा कोई मिला ही नहीं! मैंने सोचा, 'अब क्या करूँ? तो कहीं धर्मदान करो'। तो इससे उसे कोई लेना-देना नहीं है लेकिन यह तो ऐसा सब जो हाल किया, वह भी खटकता रहा बाद में। फिर बाद में पता चला कि यह कैसा कर्म था लेकिन वह अभी भी खटकता है। प्रश्नकर्ता : जब भी याद आता है तब? दादाश्री : हमेशा खटकता है, याद तो रहता ही है न हमें निरंतर! याद नहीं आता। याद मतलब याद, वह मुझे दिखाई देता है निरंतर। बचपन में मैंने पोने दो रुपए की एक चीज़ चोरी की थी, वह अभी भी मुझे याद है। उसके बाद जिंदगी भर चोरी नहीं की लेकिन किसी कर्म के उदय से अभी भी वह मुझे याद आता रहता है और मन में होता है कि उसे दो सौ-पाँच सौ भिजवा देने चाहिए, उस व्यक्ति को। हमारी तरफ से प्राप्त हो वह सौंप दिया कुदरत को प्रश्नकर्ता : दादा! जब आप बताने गए तो तब वे भाई मर चुके थे?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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