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________________ [4] नासमझी में गलतियाँ 117 दादाश्री : क्या हो सकता है ? वह ताल नहीं बैठा ! प्रश्नकर्ता : तो अब यदि वे नहीं मिलेंगे तो उसका क्या फल आएगा? तो उसका परिणाम क्या होगा ? दादाश्री : वह तो कुछ भी नहीं । उसे तो हमें खुला छोड़ देना है । हमने कह दिया है जितना उनका हो वह योग्य रूप से हमारी तरफ से उन्हें मिल जाए। हमने ऐसा तय ही कर दिया है कि जिस - जिसका जितना योग्य है, वह हमारी तरफ से उन्हें प्राप्त हो जाए। यानी कि वह कुदरत को सौंप दिया । किसी का भी बाकी न रहे अनेक गुना दे दें हम देने के लिए तैयार है किसी का भी बाकी न रहे, किचिंत्मात्र बाकी न रहे, अनेक गुना करके दे दें। हमें ऐसे पैसों का क्या करना है ? प्रश्नकर्ता: नहीं-नहीं, आप तो कुछ भी नहीं करेंगे। दादाश्री : हमने तो पिछले पाँच-सात - दस सालों से तय किया है कि ये जो कुछ भी है, आगे-पीछे का जो कुछ भी है वह सारा, परिवार में यदि कोई दुःखी है तो उनके पास पहुँचे, अगर रिश्तेदारों में कोई दुःखी हो तो उनके पास पहुँचे या फिर महात्माओं में कोई दुःखी हो तो वहाँ पर। यदि पिछले कोई ऋणानुबंध हों तो वहाँ पर जाए। लेकिन इस लक्ष्मी का किसी अच्छी जगह पर उपयोग हो जाए। अतः हम तो इस तरह से मुक्त हो गए। वह सब तो चुक जाएगा। जिसे चुकाना है उसे देर ही नहीं लगेगी। जिसकी नीयत है कि 'इतना चुका दें और इतना रहने दें', उसे परेशानी है। इतना ही देखना है कि उसकी नीयत क्या है । नीयत से राजा बनने में क्या हर्ज है लेकिन वह मुआ राजा नहीं बनता है, ज़रा सा बाकी रखता है । कभी भी मन नहीं खोलता । लेकिन इससे रही पवित्रता चारित्र की हमें तो सभी रंग लगे थे, कुछ ही रंग नहीं लगे थे । जो रंग, कवि I
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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