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________________ [2.2] मैट्रिक फेल 71 प्रश्नकर्ता : है। फर्क तो है। दादाश्री : खुमारी यानी रौब वाला। जिसमें हाथ डाले, तुरंत ही उसमें एक्सपर्ट प्रश्नकर्ता : फिर आप बड़ौदा रहने चले गए? दादाश्री : हाँ, बड़ौदा। तो तुरंत ही बिज़नेस करना आ गया। यों ब्रेन अच्छा था। बिज़नेस में जहाँ हाथ डालता वहाँ मुझे करना आ जाता था, मुझे देर ही नहीं लगती थी। जो भी दो न, उसमें एक्सपर्ट होने में देर ही नहीं लगती थी। महीने भर में एक्सपर्ट हो जाता था। हाथ डालते ही तुरंत करना आ जाता था मुझे। अभी अगर यहाँ पचास मोटेलें चल रही हों, तो मैं अकेला यहाँ बैठे-बैठे उनका मैनेजमेन्ट (संचालन) ओर्गेनाइज़ कर सकता हूँ। प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : मुझे और कुछ नहीं आता था लेकिन 'हाऊ टू ऑर्गेनाइज़', आपको लगता है कि ऐसी कोई पावर है? प्रश्नकर्ता : है, दादा। दादाश्री : इसलिए फिर छः महीने में तो सब ऑल राइट हो गया। उसमें एक्सपर्ट हो गया। यों ब्रेन अच्छा था न, इसलिए बिज़नेस में पकड़ ली लगाम, लगाम पकड़ ली। फिर साल भर में लगाम हाथ में ही ले ली। दो सालों में तो पूरी सूझ पड़ने लगी, बहुत अच्छी सूझ पड़ने लगी, लेकिन स्वतंत्र काम चाहिए था। बिज़नेस में तो कोई कहने वाला नहीं था न! बड़े भाई तो मेरे भाई थे, उसमें कोई हर्ज नहीं था। बाकी, कोई और कहने वाला तो नहीं था न! उन्होंने मुझे सूझ पड़ने दी और फिर मुझे कभी डाँटा नहीं। इस तरह से सौंप दिया था न, जैसे कि मैं स्वतंत्र था इसलिए वह करना आ गया।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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