SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानी पुरुष (भाग-1) है न! जब भी खर्चे के लिए पैसों की ज़रूरत होगी तब मिलेंगे। हाँ, अरे! होटल में जा सकते हैं, चाय-पानी पी सकते हैं, यह हो सकता है, वह हो सकता है। यह मुझे बहुत अच्छा लगा, स्वतंत्र तो रह सकेंगे और ध्यान-व्यान करना हो मन में, सत्संग करना हो, किताब पढ़नी हो तो हो सकेगा। पढ़ते जाएँगे और काम करते जाएँगे। उसके बाद ब्रदर परेशान हो गए कि अब यह उल्टे रास्ते जाएगा, उसके बजाय बिज़नेस में डाल दो। तब उन्हें मज़बूर होकर कॉन्ट्रैक्ट के बिज़नेस में लेना पड़ा। तब मैं समझ गया कि अपनी दशा बदली है। शनि की जो दशा थी, वह उतर गई। खुमारी वाले को सभी चीजें मिल आती हैं इस तरह कॉन्ट्रैक्ट की लाइन में मैं दाखिल हो गया। फिर मैं हमारे घर के ही बिज़नेस में घुस गया और उसमें से कॉन्ट्रैक्टर बन गया, लेकिन सूबेदार नहीं बनना पड़ा। दबा नहीं किसी से भी, 'नौकरी नहीं करूँगा' कहा था। क्या यह मनुष्य जन्म किराए पर देने की चीज़ है ? एक महीने का किराया कितना लेते हैं ? दो हज़ार । तो कहा, रोज़ के साठ-पैंसठ रुपए का किराया हुआ न! इसके बजाय तो एक मशीन दे दें तो सरकार सौ रुपए किराया देगी। मशीन का किराया देती है या नहीं देती सरकार? अतः मैं किराए पर नहीं गया, भाई! बैल का रोज़ तीस रुपया किराया आता है और इसका किराया पचास-साठ। तो भाई इसमें तेरा उपयोग हो रहा है! इस पर ज़रा सी भी शर्म नहीं आई तुझे? लेकिन क्या करे? कहाँ जाए बेचारा? उसके लिए तो खुमारी (रौब, इज़्ज़त) होनी चाहिए न! क्या होनी चाहिए? प्रश्नकर्ता : खुमारी होनी चाहिए। दादाश्री : ऐसा है कि खुमारी वाले को सभी चीज़ मिल जाती हैं! अहंकार वाले को नहीं मिलती। अहंकार और खमारी में फर्क है या नहीं?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy