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________________ 72 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) तो बिज़नेस में डेढ़ साल बाद तो भाई ने मुझसे कहा कि 'तू तो फर्स्ट नंबर ले आया, फर्स्ट! तू तो होशियार हो गया है!' और मेरे मन में भी पक्का हो गया कि होशियार हो गया हूँ! फिर मन में लोभ जागा कि 'पैसे कमाए। बिज़नेस अच्छा है'। इसलिए फिर उसमें डूब गए। बिज़नेस में मुझे रुचि आने लगी, पैसे कमाने का रास्ता मिला। फिर कारखाने लगाए और बाकी सब, ऐसे करके दिन बिताए। बिज़नेस का ऐसा सब काम तो आता था। कॉमनसेन्स था न, तो सभी चीज़ों का विवरण कर लेता था। बचपन से ही विवरण (analysis) करना आता था लेकिन ये पढ़ाई के पोथे-किताबें-विताबें पढ़ना, यह क्या धांधली है? यह नहीं पुसाएगा न! जो गुलामी में से मुक्त करे, वही वास्तविक ज्ञान मैट्रिक में फेल हो गया। बोलो, अब मेरी समझ व अक्ल देख ली आपने? प्रश्नकर्ता : इसमें अक्ल का काम नहीं है। दादाश्री : लेकिन मैं कमअक्ल कहलाया कि कमअक्ल था इसलिए मैट्रिक में फेल हो गया लेकिन क्योंकि मैं कमअक्ल था इसलिए मुझे यह करना आ गया। पास नहीं हुआ, वर्ना मैं उसी में भटकता रहता और सूबेदार की नौकरी करनी पड़ती और सरसूबेदार झिड़कता। जो ज्ञान हम जानते हैं वही हमें गुलाम बनाता है। फिर वह ज्ञान किस काम का? जो गुलामी में से मुक्त करे, उसे ज्ञान कहते हैं। बल्कि अगर मैं पास हो गया होता तो सूबेदार बन जाता, वह तो बल्कि गुलामी थी। तब फिर सरसूबेदार मुझे झिड़कता रहता लेकिन कुदरत ने इज़्ज़त रखी। पूरी जिंदगी नौकरी नहीं करनी पड़ी। मुझे तो ऊपरी नहीं चाहिए था इसलिए नौकरी करने का मौका ही नहीं आया। विचार भी नहीं आया नौकरी करने का लेकिन एक बार सोचना पड़ा था कुछ देर के लिए, एक ही दिन के लिए तब जब यहाँ से रूठकर चला गया था, घर से।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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