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________________ ज्ञानी पुरुष (भाग-1) खाईं। तब हॉस्टल में उन दिनों देशी घी की पूड़ियाँ, सब्जी वगैरह, शुद्ध खाना बनाता था वह महाराज! बिल्कुल डिबिया जैसी ही पूड़ियाँ और एकदम गोल लड्डू जैसी। राउन्ड दिखाई देती थीं, इतनी-इतनी सी ही। जैसे आजकल गोलगप्पे होते हैं न, गोलगप्पे की पूड़ी आती है न, उतनी सी पूरी बनती थी। शुद्ध घी की फर्स्ट क्लास पूड़ियाँ और वे इस तरह मुँह में डालते थे न, तो मुँह में रखते ही वे खुल जाती थीं। शुद्ध घी की इतनी अच्छी कि बाहर तक सुगंध आती थी, आधे मील तक। हमें भी उसमें टेस्ट आ जाता था। एक खाकर ही संतोष हो जाता था। अभी तो वैसी एक भी पूड़ी नहीं मिलती। अभी तो ऐसा भोजन भी नहीं मिलता। अभी यदि बीस-पच्चीस रुपए किलो के भाव से मँगवाएँ न, तब भी ऐसी पूड़ियाँ नहीं मिलेंगी। वैसी कितनी पूड़ियाँ खाते थे? एक-दो नहीं, कितने ही लड़के तो पचास-पचास, साठसाठ, सत्तर-सत्तर, अस्सी-अस्सी पूड़ियाँ खा जाते थे ! उन्हें इतना शौक था। प्रश्नकर्ता : आप कितनी खाते थे, दादा? दादाश्री : बीस-बीस, पच्चीस-पच्चीस खाई थीं। वे तो बहुत अच्छी पूड़ियाँ! वह शुद्ध घी, बात ही क्या करनी! तो डेढ़ सौ-डेढ़ सौ पूड़ियाँ खाने वाले लोग भी थे। भाई समझते थे कि पढ़ रहा है और हम लेते थे आइस्क्रीम की लिज़्ज़त तो हॉस्टल में रहे इसलिए आराम से खाते थे, मस्त रहते थे और फिर शाम को या रात को स्टेशन पर बाहर वहाँ आइस्क्रीम की कई दुकानें थीं, वहाँ पर आइस्क्रीम खाने जाते थे। यहाँ स्टेशन पर उस तरफ दुकानें थी भैयाजी की तो वह भैया आइस्क्रीम बनाता था न! वहाँ पर आइस्क्रीम तैयार रहती थी तो हॉस्टल के नाम पर हम वहाँ पर जाकर आइस्क्रीम खाते थे और बैठे रहते थे।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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