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________________ (२.४) अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद' २५७ खुद अवस्था में है और जो दिखाई देता है, वे सब भी अवस्थाएँ हैं और अवस्थाएँ उलझन में डाल देती हैं। वास्तव में अवस्थाएँ नहीं उलझातीं। अवस्थाओं को स्वभाव मनवाने वाली तेरी मान्यता की वजह से उलझन है। इन अवस्थाओं को ही स्वभाव मानता है। जबकि वह खुद तत्त्व है। स्वभाव अर्थात् तत्त्व। अतः वह स्वभाव अविनाशी है। जबकि अवस्था का अर्थ है विनाशी। रियल तत्त्व आत्मा है और उसकी जो अवस्थाएँ हैं, उन्हें वह ऐसा कहता है कि 'मैं ही हूँ'। अतः अगले जन्म के लिए नए बीज डालता है। आत्मा अपने स्वभाव में ही है। जब होली देखता है, तब कहता है 'मैं देख रहा था'। वहीं पर कर्म बंधन होता है, वास्तव में तो आत्मा का स्वभाव ही है, देखना और जानना। 'आप' उन अवस्थाओं को देखते रहते हो। वे सभी अवस्थाएँ विनाशी हैं और वस्तु अविनाशी है। अज्ञानता में सभी अवस्थाएँ लिपट जाती हैं और फिर 'खुद' जैसा था, वैसे का वैसा ही रहता है। ___ अवस्थाएँ आर ऑल (सभी) टेम्परेरी (हैं) और लोग टेम्परेरी में रहते हैं, टेम्परेरी को देखते हैं और टेम्परेरी की बात करते हैं। परमानेन्ट में नहीं रहे हैं, परमानेन्ट को नहीं जानते, परमानेन्ट की बात नहीं करते। सभी टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स हैं। आप वर्ल्ड में चाहे कहीं भी जाओगे लेकिन टेम्परेरी अवस्थाओं के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा। अवस्थाओं की भी अनंत अवस्थाएँ हैं और उनकी भी अवस्थाएँ हैं, जिन्हें वह खुद का स्वरूप मान बैठा है। मूलतः उसका खुद का जो तत्त्व स्वरूप है, वह परमानेन्ट है, अविनाशी है। आप खुद ही भगवान हो। प्रश्नकर्ता : मुझे यदि यह अविनाशी तत्त्व बनना हो तो मुझे क्या करना चाहिए? दादाश्री : आपको अविनाशी बनना पड़ेगा। आप विनाशी में रहकर किस तरह से कह सकोगे कि 'अविनाशी हूँ?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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