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________________ २५८ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) प्रश्नकर्ता : नहीं! लेकिन मुझे अविनाशी बनना है । दादाश्री : हाँ ! तो आना मेरे पास, कर देंगे। एक बार अविनाशी बनने के बाद विनाशी नहीं बन पाओगे । इसलिए यदि पहले से ही चेतना हो तो चेत जाना। प्रश्नकर्ता : इसमें क्या खतरा है, अविनाशी बनने के बाद ? दादाश्री : फिर ये जो जन्मोजन्म के शौक हैं, जलेबी वगैरह यह सब, खाने-पीने का, फिर वह नहीं रहेगा । फिर खुद के आत्मा का सुख मिलेगा, स्वयं सुख! सनातन सुख, शाश्वत सुख !! यह सुख वास्तव में सुख है ही नहीं । यह तो सिर्फ कल्पित है। 1 चंदूभाई नामक यह एक अवस्था है। कितने ही जन्मों से उसे 'मेरी-मेरी' कहकर मर गए। इस जगत् में माँगने जैसी एक ही चीज़ है कि 'इस भ्रांति से मुक्त करवाओ', इस जगत् में कड़वे व मीठे फल सभी भ्रांति हैं । अवस्थाओं में अभाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए। कोई हमें परेशान करे तब भी उस पर अभाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि अवस्था मात्र कुदरती रचना है। अवस्था अनित्य, वस्तु नित्य अवस्थाएँ बदलती रहती हैं । उन अवस्थाओं को जगत् के लोग देखते हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि 'ओहोहो ! यह कितना अच्छा दिखाई दे रहा है!' और कितने ही लोग अवस्था को देखते हैं और उन्हें घबराहट हो जाती हैं । इस प्रकार से यदि निरा कोहरा, कोहरा, कोहरा हो तो कहेगा, 'मेरा बेटा भी नहीं दिखाई दे रहा, साथ में ही था न !' अरे भाई, यह जो कोहरा है, वह तो अवस्था है, अभी चली जाएगी। चली नहीं जातीं सब ? अवस्थाओं को नित्य मान लेता है । अनित्य वस्तु को नित्य मानकर दुःखी होता रहता है । यदि तत्त्व को पकड़ लेगा तो खुद मुक्त हो जाएगा, अवस्थाओं से ऊपर उठेगा। वर्ना तब तक विनाशी है । यह पूरा संसार अवस्था से बाहर नहीं निकल सकता। सिर्फ ज्ञानी ही निकल सकते हैं। अन्य किसी की बिसात भी नहीं है ! मनुष्य सिर्फ
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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