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________________ [४] अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद' उलझन मात्र रोंग बिलीफ से है समसरण (संसार) मार्ग है ही ऐसा कि उसमें सिकते हुए ही जाता है। जैसे कि पहले आफ्रीका में जाते ही कठिनाईयों में डालते थे लेकिन वह समझ जाता था कि यह भठ्ठी है और मैं हूँ, उसी प्रकार से आत्मा को समसरण मार्ग में कठिनाईयों में से तरह-तरह की प्रक्रियाओं में से गुज़रना पड़ता है। इस समसरण मार्ग पर जाते हुए मार्ग के कारणों से अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं। इससे आत्मा को कुछ भी नहीं होता लेकिन 'वह' मान बैठता है कि मैं सिक गया हूँ। जैसी प्रक्रियाओं में से (अवस्थाओं में से) गुज़रता है 'खुद को' वैसा ही मान बैठता है और उस भ्रमणा में वह जैसा चिंतन करता है, खुद वैसा ही बन जाता है। खुद के मूल स्वरूप को जान जाए तो कुछ भी नहीं है। भ्रमणा भी एक भान है। व्यवहार राशि में आने से लेकर व्यवहार राशि के खत्म होने तक अवस्थाएँ ही हैं। लेकिन अंदर जो अहंकार खड़ा हो जाता है, वह दुःख को वेदता है। शाता (सुख-परिणाम) भी वेदता है और अशाता (दु:ख-परिणाम) को भी वेदता है। उस वेदन से यह सब खड़ा हो गया है, रोंग बिलीफ खड़ी हो गई है। आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। आत्मा अपने गुण से या अपने द्रव्य से बिगड़ नहीं गया है लेकिन पर्यायों पर जो असर हो गया है, वह रोंग बिलीफ से है। पूरा जगत् तत्त्वों से बना हुआ है, छः तत्त्वों से। उनकी अवस्थाओं को 'यह' (अहम्) खुद का (स्वरूप) मानता है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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