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________________ 'दादा' का जो अक्रम ज्ञान है, वह चेतन ज्ञान है । इसके मिलते ही यह दोनों में भेद डाल देता है ! यह व्यतिरेक गुणों का ज्ञान नहीं है, मूल ज्ञान है । यह जो व्यवस्थित शक्ति है, वह छः द्रव्यों के अंदर है, उनसे बाहर तो कुछ है ही नहीं । दर्पण का संसर्ग दोष लगने से खुद जैसे ही दूसरे 'चंदूभाई' दिखाई देते हैं न? काल परिपक्व होने पर वह बंद हो जाता है, संयोग वियोगी स्वभाव के ही हैं। इस संसार मार्ग की भटकन में किसी का दोष नहीं है । यह सब विशेष भाव उत्पन्न होने से हुआ है । क्या सामीप्य भाव भी नियति के अधीन है ? नियति के कारण ये सभी तत्त्व इकट्ठे होते हैं। फिर विशेष भाव उत्पन्न होता है । नियति कुदरती रूप से नियति ही है । वह बहाव है इस जगत् का । ये सभी मनुष्य उसके बहाव में चल रहे हैं, नियति के प्रवाह में ! समसरण मार्ग नियति की वजह से ही बह रहा है । उसमें बदलाव नहीं हो सकता। (नियति के बारे में और अधिक सत्संग, आप्तवाणी११ (पू.) गुजराती का पेज नं.- २७०) समुद्र और सूर्यनारायण, दोनों के मिलने से भाप बनती है। उसमें कर्ता कौन है? उसमें दोनों के अपने-अपने गुणधर्म ज्यों के त्यों रहते हुए नया व्यतिरेक गुण उत्पन्न होता है । इसी प्रकार आत्मा और जड़ तत्त्व के मिलने से यह जगत् व्यतिरेक गुण उत्पन्न करता है, जो क्रोध - मानमाया-लोभ कहलाते हैं । आत्मा की उपस्थिति से ही यह पूरा जगत् बन गया है। उपस्थिति के बिना तो कुछ भी नहीं हो सकता । यह पूरा विज्ञान है ! इसमें आत्मा ने कहाँ कुछ किया ही है ? आत्मा की उपस्थिति की क्या भूमिका है ? 30
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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