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________________ के बाद कर्तापन से 'मैं कर रहा हूँ', ऐसी मान्यता से पुद्गल में जो परिवर्तन आता है, उसे विभाविक पुद्गल (मिश्रसा) कहते हैं। जो विधर्मी पुद्गल से भी बहुत आगे स्थूल में चला गया है और उसमें रक्त, पीप और माँस होता है। जगत् में छः शाश्वत द्रव्य (तत्त्व) मिलते हैं और फिर अलग हो जाते हैं, ऐसा निरंतर चलता ही रहता है। तत्त्व मिक्स्चर के रूप में रहते हैं, कम्पाउन्ड नहीं बनते। यदि कम्पाउन्ड बन जाएँ तब तो ऐसा माना जाएगा कि एक-दूसरे से उधार लिया। जगत् का कारण ये छः द्रव्य हैं। इन सब के उत्पन्न होने का मूल कारण पुद्गल ही है। जो पाँच इन्द्रियों से अनुभव किया जा सके, वह सारा पुद्गल प्रभाव है। पुद्गल के रूपी भाव के कारण विशेष भाव उत्पन्न होता है। ये जो परमाणु हैं, वे तत्त्व हैं, पुद्गल कोई तत्त्व नहीं है। वह विशेष परिणाम है। आत्मा के विशेष परिणाम के कारण इन परमाणुओं में विशेष परिणाम भास्यमान होता है। जैसे कि दर्पण के सामने कुछ भी करने से वह उसका परिणाम बताता है न! जड़ और चेतन, इन दोनों से ही विभाव होता है। अन्य तत्त्व मिलते हैं लेकिन विभाव होने में उनसे कोई मदद नहीं मिलती, वे उदासीन भाव से रहे हुए हैं। दो द्रव्यों से विभाव होने के बाद फिर बाकी के चार द्रव्य उदासीन भाव से इन दोनों की मदद करते हैं यानी कि चोर की भी मदद करते हैं और दानवीर की भी करते हैं। छः तत्त्वों में से कोई भी किसी का विरुद्धधर्मी नहीं है। हाँ. हर एक के अपने-अपने धर्म हैं, अलग और स्वतंत्र धर्म हैं। इन सब में से कोई किसी में दखल नहीं करता। सब निमित्त नैमित्तिक है। वर्ना यदि एक-दूसरे पर उपकार होने लगे तो वह वापस कब उतारेगा? 29
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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