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________________ बावजूद मूल शुद्ध द्रव्य, शुद्ध चेतन और शुद्ध जड़ जैसे हैं वैसे ही रहते प्रसवधर्मी प्रकृति की शक्ति अभी परमात्मा से भी कहीं ज़्यादा है लेकिन उसमें चैतन्य शक्ति नहीं है। चेतन को सिर्फ स्पर्श करने से ही प्रकृति चार्ज हो जाती है। ज्ञान, भान और वर्तन एकाकार हो जाने के बाद पूर्ण परमात्मा बनता है। समुद्र की खारी हवा छूते ही लोहे पर जंग चढ़ जाता है। इसमें कर्ता कौन है ? किस प्रकार से हुआ? यह तो ऐसा है कि विज्ञान के नियम के अधीन ही दो चीज़ों के इकट्ठे होने से तीसरा नया ही परिणाम, विशेष परिणाम उत्पन्न होता है, इसमें कोई गुनहगार नहीं है। इसमें यह जो जंग है, वही अहंकार है, जिससे प्रकृति बनती है और लोहे को आत्मा समझना। मूल तत्त्व को कुछ भी नहीं होता। लोहा, लोहे का काम करता है और जंग, जंग का काम करता है। यदि निरंतर देखता रहे कि अंत:करण क्या कर रहा है, तो वह ज्ञान केवलज्ञान तक पहुंच जाएगा। (७) छः तत्त्वों के समसरण से विभाव ___ जड़ व चेतन, ब्रह्मांड में (लोक में) दोनों शुरू से साथ में ही थे। छः तत्त्व साथ में ही हैं। छः अलग हो जाएँगे तभी अपने-अपने गुणधर्म में आएँगे। छ: तत्त्वों में विधर्म घुस गया है लेकिन उनमें से चार तत्त्व विधर्मी नहीं हुए हैं, साथ में रहने के बावजूद भी स्वधर्म में रह सकते हैं जबकि पुद्गल और आत्मा की विभाविक दशा के कारण ये दोनों विधर्मी बन गए हैं। बाकी के चार विधर्मी नहीं बनते। आत्मा विधर्मी है अर्थात् भ्रांति उत्पन्न हो गई कि यह 'मैं कर रहा हूँ' और पुद्गल विधर्मी अर्थात् वह जो प्रयोगसा होने से बनता है। उसमें रक्त, पीप व माँस नहीं होता। इसमें विधर्मी पुद्गल और विभाविक पुद्गल दो अलग ही हैं। विभाव दशा में आया हुआ प्रथम 'अहम्' यानी कि 'मैं' के उत्पन्न होने 28
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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