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________________ (१.६) विशेष भाव - विशेष ज्ञान - अज्ञान जड़ है लेकिन फिर इसका परिणाम आया। विशेष परिणाम का जो रिजल्ट आया न, वह प्रकृति है। विशेष परिणाम में सब से पहले 'मैं' बना, फिर उसमें से प्रकृति बनी। जड़ और चेतन, दोनों फँस गए हैं इसलिए प्रकृति रूप हुआ। प्रश्नकर्ता : ये पाँचों तत्त्व प्रकृति के अधीन हैं न? दादाश्री : वह सब, वही प्रकृति है। जो पाँच तत्त्वों से बनी है, वह प्रकृति है। उसमें आत्मा का विशेष भाव उत्पन्न हो गया है। यहाँ उसका वह विशेष भाव हुआ इसलिए प्रकृति बन गई और वह फल देती ही रहती है निरंतर। अब प्रकृति और पुरुष दोनों अलग कर दिए उसके बाद असल पुरुषार्थ शुरू होता है। वर्ना जब तक प्रकृति में रहता है तब तक भ्रांत पुरुषार्थ तो चलता ही रहता है। भ्रांत पुरुषार्थ! यह ज्ञान देने के बाद में उनका सच्चे पुरुष का पुरुषार्थ शुरू हुआ है। प्रकृति बनी प्रसवधर्मी, परमाणुओं के कारण यह जगत् निरंतर परिवर्तनशील है। इन छः तत्त्वों के आमने-सामने समागम में आने से यह सबकुछ हो जाता है। यह जगत् बिना कर्ता के बन गया है। साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स से बन गया है। चेतन का ज्ञान-दर्शन स्वाभाविक था, वह अपने समसरण मार्ग में विभाविक हो जाता है और उतना ही भाग सर्जनात्मक जगत् के रूप में दिखाई देता है। उसके अलावा शुद्ध चेतन और शुद्ध पुद्गल परमाणु, ये दोनों जैसे हैं वैसे ही हैं। परमाणु प्रसवधर्मी हैं इसलिए चेतन तत्त्व के विभाविक होते ही प्रकृति का सर्जन होता है। यानी कि बाहर जो जगत् दिखाई देता है, उसमें प्रकृति वाला भाग ही अर्थात् सर्जन भाग, विसर्जनात्मक रूप से दिखाई देता है और शुद्ध चेतन और शुद्ध पुद्गल परमाणु (जड़), जैसे हैं वैसे ही रहते हैं। इस दुनिया में यह भी भ्रांति का भान है कि 'मैं सर्जन कर रहा हूँ'। सर्जन और विसर्जन, ये दोनों नैचुरल हैं। साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं। इस प्रसवधर्मी प्रकृति की शक्ति भगवान से भी कहीं अधिक है
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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