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________________ ७४ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) लेकिन चैतन्य शक्ति नहीं है। इस प्रकृति में ऐसा गुण है कि चेतन का स्पर्श करते ही वह चार्ज हो जाती है। बाकी, आत्मा के गुणधर्म कभी भी नहीं बदलते। ज्ञान विभाविक हो जाने से, प्रकृति प्रसवधर्मी होने की वजह से, वह चार्ज हो जाती है। विभाव का और अधिक विश्लेषण प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि, 'कई बार विशेष भाव के बारे में बताया है लेकिन अभी तक अपने महात्मा समझते नहीं हैं कि विशेष भाव क्या है ?' तो विशेष परिणाम के और अधिक उदाहरण देकर समझाइए न, ताकि सभी को समझ में फिट हो जाए। दादाश्री : हाँ। हम समुद्र के किनारे, मान लो समुद्र से आधा मील दूर हमने एक मकान बनाया हो, हवा का आनंद लेने के लिए और वहाँ उस मकान में दो ट्रक भरकर नया-नया लोहा डाल आएँ। फिर चौकीदार से कहें कि, 'भाई, इस लोहे का ज़रा ठीक से ध्यान रखना'। फिर हम दो साल के लिए फॉरेन चले गए लेकिन दो साल बाद जब वापस वहाँ पर आएँगे तो लोहे में कुछ फर्क दिखाई देगा या नहीं? लोहे पर कोई असर हुआ होता है? प्रश्नकर्ता : जंग लग जाता है। दादाश्री : क्यों? बरसात का पानी न आए ऐसी जगह पर रखा हो, ढकी हुई जगह हो फिर भी? प्रश्नकर्ता : जंग लग जाएगा। दादाश्री : हं! आपको ऐसा भविष्यज्ञान कैसे हो गया? जंग लगने का? लोहा आने से पहले ही खुद को भविष्यज्ञान रहता है, क्योंकि अनुभव हो चुका है न। अब तो यह जंग लग गया, तो अब आप मुझे यह बताओ कि यह जंग किसने लगाया? साबित कर दो। यह जंग किसका है और किसकी इच्छा से हुआ? इतना-इतना जंग लग जाता है ! हम कहते हैं
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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