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में अपूर्व आदर्श रूप चमकेगा। देखिये ! सत्पुरुषों का जन्म प्रभाव ! अपनी प्रभा दूसरों के हृदय कमल में स्वयं चलकर यशोगान कराती
है।
इधर माता-पिता विचार विमर्श करके अपने सम्बन्धियों को आमन्त्रण देकर खूब सत्कार सम्मान प्रेमपूर्वक करने लगे।
आगन्तुक सम्बन्धी एवं नागरिक जनता के मनोनुकूल ज्योतिषियों ने शास्त्रानुसार हीराचन्द नाम रखा । हीरा नाम मात्र ही नहीं था बल्कि हीरा वास्तविक हीरा था। द्वितीया चन्द्र कला की तरह प्रतिभाशाली हीराचन्द्र भी दिनानुदिन विशेष बढ़ते हुये सात वर्ष के होने पर स्कूल में अध्यापक के पास शिक्षा के लिये जाने लगे। आपकी बुद्धि बड़ी विकस्वर थी। प्रकृति के आप बड़े चंचल थे। मगर गम्भीर भी कम न थे। स्कूल के सत्र छात्रों में आपकी मेधा अत्यधिक तेजस्वी थी। अल्प समय में ही आपने 'पांचों प्रतिक्रमण' "जीव विचार" "नवतत्व" "दंडक" "संघयणी" "नव स्मरण" "तीन भाष्य" "योगसूत्र" "उपदेश माला" "दर्शन सित्तरी" "चउ शरण पयन्ना" इत्यादि ग्रन्थ स्वाधीन कर लिये । जैसे २ आपका कलाभ्यास बढ़ने लगा वैसे २ गुण भी अधिक बढने लगे। कहा है कि
अक्रोध वैराग्य जितेन्द्रियत्वम् । क्षमादया सर्वजन प्रियत्वम् ॥ निर्लोभिदाता भय शोक मुक्ता। ज्ञान प्रबोधे दश लक्षणानि ॥१॥
जब हीरजी के अन्तःकरण में ज्ञान का प्रादुर्भाव विशेष रूप से होने लगा तब से अपने हृदय में इन दस लक्षणों को भी धीरे धीरे स्थापन करने लगे। सारे शहर में एवं घर २ में बातें होने लगी कि सब विद्यार्थियों में अग्रेसर बन गया है और शिक्षक भी आपका
आदर सत्कार प्रेम से करते हैं । यह अपने गांव में ऐसा नाम करेगा जो कि आज दिन पर्यन्त किसी ने नहीं किया। पाठक। देखिये। यह लोकोक्ति भी वास्तविक चरितार्थ होने जा रही है। ,
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