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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं सरोवर में स्वतन्त्र घूमते हुये हाथी को स्वप्न में देखकर नाथी देवी रोमांचित हृदय से अपने स्वामी से प्रश्न करती है। हे नाथ ! मैंने आज स्वप्न यह देखा है । तब श्रेष्ठी ने कहा कि हे प्रिये ! जो तुमने शुभ प्रद एवं अभीष्ट फल को देने वाला स्वप्न देखा है। इसके प्रभाव से निश्चय ही पुत्र रत्न होने की पूर्ण आशा है। नाथीदेवी निज पतिदेव का मनोनुकूल वचन सुनकर हर्षित हृदय से प्रेमपूर्वक गर्भ का पोषण करने लगी। इस उत्तम गर्भ के प्रभाव से घर में सुख एवं सम्पत्ति भी अनायास ही बढने लगी। इस बढ़ती हुई सौभाग्यलता को देख कर जल मीन की तरह पति और पत्नी के हृदय सरोवर में मनोरथ की श्रेणिये भी कल्लोल करती हुई बढ़ने लगी। एक दिन विलक्षण सुरभि वायु दिशाओं में चलने लगा। सर्व पशु पक्षी भी विलक्षण मधुर स्वर से बोलते हुए जंगल की राह चलने लगे। मानो कि भूतल में चन्द्रोदय की सूचना कर रहे हों । पालनपुर निवासी सज्जन भी निज निज आसन को छोड़ कर नित्य क्रिया करने लगे। कराशाह भी आवश्यक कार्य के लिये बाहर चले गये। इधर नाथी ने सं० १५८३ मार्गशीर्ष शुक्ला नवमी के दिन प्रातःकाल शुभ मुहुर्त में निर्विघ्नपूर्वक उत्तमोत्तम लक्षणसंपन्न पुत्ररत्न को जन्म दिया। मानो कि महीतल पर चन्द्रोदय हो गया हो । सेठजी लौटकर कुछ समय के बाद आते ही दासी के मुख से जन्मोत्सव का हाल सुनकर असीम हर्ष में मग्न हो गये । सेठजी के घर पर अनेक तरह मांगलिक गीत होने लगे। इस पुत्र जन्म की खुशियाली में कुंराशाह ने अनेक उत्तमोत्तम धर्म कार्य करते हुए दीन दुखियों को अभिलाषित पान देकर संतुष्ट कर दिये । समस्त शहरवासी सज्जन भी सेठजी के पर पर पुत्र जन्मोत्सव में भाग लेते हुये हर्ष में अभिवृद्धि करने लगे। सम पुरुषों का जन्म किसको आनन्ददायक नहीं होता ? सर्व नगरवासियों के मुख से यही शब्द निकलने लगा कि लड़का भारत For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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