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________________ असंख्याते प्रदेशपर करता है तद्यपि यहाँपर मौख्यता एकही प्रदेशकी गीनी गइ है। इसी माफीक प्रत्येक प्रदेशपर जन्ममरण करते हुवे सम्पुरण लोक पुरण करदे उन्हीको क्षेत्रापेक्षा बादर पुद्गलपरावर्तन केहते है तात्पर्य यह हूवे कि एकेक प्रदेशपर भूतकालमें जीव अनन्तीवार जन्ममरण कीया है बादर पुद्गलपरावर्तनमें काल अनन्ता लगता है। ( 4 ) क्षेत्रापेक्षा सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन-पंक्तीवन्ध आ. काश प्रदेशको श्रेणि केहते है वह श्रेणियों लोकमें असंख्याती है जिस आकाशप्रदेशपर जीव जन्मा है उन्ही आकाशप्रदेशकि पंक्तीवन्ध श्रेणिपर जन्ममरण करता जावे इन्हीसे सम्पुरण श्रेणि पुरण करदे अगर वीचमें विषमश्रेणि अर्थात् श्रेणि बहार जन्म करे तो गीनतीमें नहीं एक प्राचार्य महाराजकी मान्यता है कि जीतना विषमश्रेणि भव करे वह गीनतीमें नहीं दुसरे आचार्योंकी मान्यता है कि वहांतक जितने शमश्रेणि विषमश्रेणि भव कीया है वह सर्वही गीनतीमें नहीं है / तत्त्व के वलीगम्य इसी माफीक श्रेणि पुरण करे पीछे उन्हीके पासकि श्रेणिपर जन्ममरण करे वीचमें विषमश्रेणि न करे तो गीनतीमें अगर करे तो. गीनतीमें नहीं इसी माफीक सम्पुरण लोककि श्रेणियोंको क्रमःसर पुरण करे उन्हीको क्षेत्रापेक्षा सूक्ष्म पुद्गल परावर्तन केहते है बादरसे सूक्ष्म काल अनन्तगुणो लागे है।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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