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________________ 144 वैक्रयसे लिये हुवे सर्व द्रव्य गीनतीमे नही अर्थात् फीरसे औदारीक वर्गणाद्वारे द्रव्यग्रहन करे तात्पर्य यह है कि औदारीक वर्गणाद्वारे द्रव्यग्रहन करतों जहँ तक सम्पुर्ण लोकके द्रव्य औदारीक वर्गणाद्वारे ग्रहन करे वहातक वीचमे दुसरी वर्गणा न आवे वह एक वर्गण कही जावे / इसीमाफीक वैक्रय वर्गणासे द्रव्यग्रहन करतो वीचमे औदारीकादि वर्गणासे द्रव्य लेवेतों गीनतीमे नही परन्तु सर्व लोकका द्रव्य वैक्रयसेही लेवे वीचमे दुसरा भव नकरे तो गीनतीमे आवे इसी माफीक सातों वर्गणासे क्रमःसर सम्पुरण लोक द्रव्यग्रहन करे उन्हीकों द्रव्यापेक्षा सूक्षम पुद्गल परावर्तन केहते है. (3) क्षेत्रापेक्षा चादर पुदलपरावन-असंख्याते कोडो न कोड योजनके विस्तारवाला यह लोक है जिन्ही के अन्दर रहे हवे आकाश प्रदेश भी असंख्याते है उन्ही आकाश प्रदेशोंको एकेक समय एकेक प्रदेश निकाला जावे तो असंख्याते कालचक्र पुर्ण हो जावे इतने आकाश प्रदेश है.. .. एक आकाशप्रदेश पर जीव जन्ममरण कीया है वह गीनतीमे और फीरसे उन्ही आकाशप्रदेशपर मेरे वह इन्ही पुद्गलपरावर्तन कि गीनतीमे नही आवे इसी माफीक अस्पर्श किये हुवे आकाशप्रदेश पर जन्ममरण करते हुने सम्पुरण लोकाकाशप्रदेशोंको स्पर्श करे / जीव जन्ममरण करता है वह
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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