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________________ [ ८१ ] थोकडा नम्बर १ सूत्र श्री पनवणाजी पद ३६ (केवली समुद्घात) (प्र०) हे भगवान् ! अनगार भावित आत्माका घणी केवली समुद्घात करे जिसमें निर्जरा किये हुवे कर्म पुद्गल होते हैं वह सर्व लोक स्पर्श करे अर्थात सर्व लोकमें व्यापक हो जाते हैं ? उन सुक्ष्म पुगलोंको छदमस्त जीब वर्ण, गंध, रस स्पर्श करके नाणे देखे ! (उ० ) छद्मस्त नहीं जाणे नहीं देखे । कारण जैसे (हृष्टांत ) यह जम्बूद्वीप १ लक्ष योजनका है जिसकी परिधी ३१६२२७ योजन ३ गउ १२८ घमुष्य १३॥ अंगुल १ जव १ जूँ १ लीख ६ नालाग्रह ५ व्यवहारीया परमाणू साधिक होती है जिसको कोई महान ऋद्धिवान् शक्तीवान् देवता इस्तगत सुगन्ध पदार्थका डिब्बा लेकर तीन चिपटी बनावे इतनेमें उस सुगन्धी डिबेको हाथमें लिये हुवे २१ बार जम्बूद्दीपकी प्रद क्षिणा दे और उस सुगन्धी डिब्बीमेंसे निकले हुबे पुल जो जम्बूद्वीपमें व्याप्त है उन पुद्गलोंको छदमस्त नहीं देख सकता । वे अठ स्पर्शी होने पर भी इतने सुक्ष्म है तो कमौके पुद्गल तो चौ स्पर्शी है उसको छमस्त कैसे देख सकता है अर्थात् चौ स्पशी बहुत ही सुक्ष्म होते है उसको छमस्त नहीं देख सकता । केवली समु० किंस वास्ते करते है ? जिनके चार कर्म : (बेदनी, आयुष्य, नाम, गोत्र ) बाकी रहे हैं इसमेंसे आयुष्य कर्म अरुप हो और वेदनी कर्म जादा हो उसको सम करनेके लिये केवली समुद्रघात करते है।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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