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________________ 180] एवं नारकी परन्तु क्षेत्र से ज० १७०० बोनन साधिक उ. असंख्याता जीमन (कारन पाताल काशीम उत्पन्न हो तो) कालसे १-२-३ समय शेष समुच्चयकी माफक। ... ....... इसी तरह शेष २३ दंडक समुच्चय बत परन्तु पांच स्थावर में काल विग्रहापेक्षा १-२-३-2 समयका कहना बाकीमें १-२-३ समय काही है। ... (५०) समुच्चय जीव वैक्रिय समुद्घातकी एच्छा . . (३०) कम्बा ज. अंगुलके सं० माम उ० सं० जोजन प्रमाणे एक दिशा वा विदिशा। कालसे १-२-३ समयका स्पर्शेर शेष अस्पर्शा और क्रिया पूर्वोक्त कहनी । स्यात् ३-४-५ औ. इनके मांगा १ पूर्ववत् । इसी तरह नारकी परन्तु मायाम एक दिशामें । . एवं वायु काय और तिर्यच पंचेन्द्रि भी समझना । बाकीदेवता मनुष्य समुच्चय वत् । इसी तरह तेनस समु० वैक्रिय समु० वत् समझना । मामाम अंगुलके असं में भांग होता है। एवं यावत् वैमानिक तक २१ दंडक, परन्तु तिर्यच पंचेन्द्रियमें एक ही दिशा कहना। मा. हारिक समु० समुच्चजीव और मनुष्य करे तो विष्कम और बाहुत्यपने तो शरीर प्रमाणे मायाम न० अंगुलके असं में भाग उ० सं० जोजन प्रमाण एक दिशीमें कालसे १-२-३ समय छोडनेका काल अन्तर मुहूर्त क्रिया पूर्वोक्त ३-१-६ और भांगा चार भी पूर्ववत् समझ लेना। सेवं भंते से भैते तमेव सचम्। .
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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