SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [७९) (उ०) स्यात ३-४-५ क्रिया लगती है. (१) अपने खराब योगोंसे तीन क्रिया (काईया, अधिकरणीया, पावसीया ) (२) पर जीवको तकलीफ होनेसे चार किया (परितापनीया) ___(३) पर मीवकी धात होनेसे पांच क्रिया लगती है (पाणईवाय) अधिक इसके चार भांगो। (१) एक जीवको एक जीवकी स्यात् ३-४-५ क्रिया (२) एक जीवको घगा जीवोकी स्यात् ३-४-५,. (३) घणा जीवोंको एक जीवकी स्यात् ५-४-५ ,, (४) घणा जीवोंको घणा जीवोकी घणी ३-४-५, इसी माफक समुच्चय जीवोंकी तरह २४ दंडक भी समझना (प्र०) समुच्चय जीत मर्णान्तिक समु० करते हुए की एच्छा ? . (उ०) क्षेत्र विक्रम और पहलतो शरीर प्रमाणे लम्बा एक दिशी में जघन्य अंगुलके असंख्य भाग उत्कृष्ट असंख्याता जोजन इतना क्षेत्र स्पर्श. शेष क्षेत्र अस्पी रहे कालकी अपेछा १-२-३ समय और विग्रह गती करे ते १-२-३-४ समयका काल स्पर्श शेष काल अस्पर्श हुआ रहे। ... ... मर्णान्तिक समु० के पुद्गल अन्तर मुहूर्त शरीर पने रहके पीछे वे पुद्गल छूटते है उनसे किसी भी प्राण, भूत, जीव, सत्वको तकलीफ हो तो समु० करनेवाले की क्रिया स्यातू १-४-५ लगे जिसके पूर्वोक १ मांगे कर लेना। .
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy