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________________ [२३] वेदनाधिकारे संज्ञी भूतके स्थान अम यी सम्यग्दृष्टी और मसंज्ञी भूतके स्थान मायी मिथ्यात्दृष्टी कहना तथा मनुष्यमें क्रियाफिकारे मरागी वीतरागी या प्रमादि अप्रमादीका भेद नहीं कहना कारण कृष्म लेश्यावाले सर्व प्रमादि होते हैं शेष पूर्ववत् एवं १९८ (३) निल लेश्याके १९८ मांगा कृष्णवत् (४) कपोत लेश्याके १९८ भांगा कृष्णवत् (५) तेनो लेश्यामें १८ दंडक है (तेउ वायु तीन वैकले. न्द्रीय नारकी एवं १ वर्गके) विशेष है कि मनुष्यमें क्रियाधिकारे सरागी वीतरागी नहीं हो परन्तु प्रमादी अप्रमादीमें क्रिया पूर्ववत् कहना एवं १८ कोनौ गुण करनासे १६२ मांगा होता है । (६) पद्मालेदयामें दंडक तीन-तीर्यच पांचेन्द्रिय मनुष्य और वैमानिक देवे सर्वाधिकार तेजो लेश्यावत् तीनको नौ गुण करनेसे २७ भांगा होता है। (७) शुक्ललेश्या ये तीन दंडक पूर्ववत् परन्तु मनुष्यमें निवाधारे सरागी वीतरागी प्रमादि अप्रमादिका भेद और क्रिय समुच्चयवत् कहेना तीनकों नौ गुण करनेसे २७ भागा होते है __ एवं भांगा २११-२१६-१९८-१९८-१९८-१६२ २७-१७ सर्व १२४२ सेवभो सेवंभंते तमेव सचम
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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