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________________ संबति मिस्मे संयतासंयति (श्रावक) को मारंभी की परिगृहर्षि ओर मायाकि यह तीन क्रिया लागे कारण भन्तानुबन्धी चोकडीसे मिथ्यात्वकि क्रिया ओर अपत्याख्यानाकि चोक डोसे अपञ्चरवार णकि क्रिया लगती है वह दोनो चोकडी श्रावकके न होनाले दोनों क्रियाके अभाव है अगर अन्य स्थानपर श्रावकको व्रतावजी कहा है वह परिग्रहकी अपेक्षा कहा है । शेष नरकवत । (१) मनुष्य-मनुष्य दो प्रकारके होते है (१) महाशरीरा वह बहुत पुद्गलोंका आहार करते है परन्तु ठेर ठेरके (युगल मनुध्यापेक्षा ) (२) स्वल्प शरीरा नरकवत् तथा क्रियाधिकारे मनुष्य तीन प्रकारका (१) सम्यग्दृष्टी (२) मिथ्या (३) मिश्र० जिसमें भी संयतिका दो भेद हैं (१) सरागी (२) वीतरागी निसमें वीत. रागीके पांच क्रियासे कोई भी क्रिया नहीं है गे सरागी है उन्होंका दो भेद है (१) प्रमत संयति (२) अप्रमत संयति जो अप्रमत. उन्होंको एक मायकी क्रिया है जो प्रमत है उन्होंको आरंभ कि और माया कि यह दो क्रिया है संयतासयतके तीन सम्यग्दृष्टीके चार मिथ्यात्वी मिश्रके पात्रों क्रिया लागे पूर्ववत् । एवं २४ दंडकपर ९ द्वार उतारणासे २१६ भांगा है। । अब, लेश्याके साथ १बार केहेते है । नरकादि २४ दंडक । लेश्या संयुक्त पर नौ नौ द्वार पूर्ववत् केहनेसे २१६ भांगा होता है। (१) कृष्णलेश्यामें-ज्योतिषी वैमानि वनके १२ दंडक है ५ पूर्ववत् ९ द्वार कहनेसे १९८ भांगा होते हैं परन्तु नरकादिमें
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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