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________________ १५३ ( ७ ) मोक्षमार्गको संसारका मार्ग श्रद्धे-जैसे ज्ञान दर्शन चारित्रादिको संसार समझे । " मि० (८) संसारके मार्गको मोक्षका मार्ग श्रद्धे-जैसे मृतककी पीछे पड, श्राद्ध, ओसर, बलीदानादिको मोक्ष मार्ग समझना । मि० ( ९ ) मोक्ष गयेको अमोक्ष समझना-जैसे केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष गयेको फिर आके अवतार लेंगे ऐसा कहना । मि० (१०) अमोक्षको मोक्ष कहना -जैसे कृष्णादिकी अभी मोक्ष नही हुवा उनको मोक्ष हुवा मानना । मि० ( ११ ) अभिग्रह मिथ्यात्व - जैसे मिथ्यात्व, हठ, कदाग्रहको पकडकर कुगुरु, कुदेव, कुधर्मपर ही श्रद्धा रखे अपने ग्रहण कियेको मिथ्या समझने पर भी न छोडे । मि० ( १२ ) अनभिग्रह मिथ्यात्व - जैसे कुदेष, कुगुरु, कुधर्मपर वैसे ही सुदेव, सुगुरु, सुधर्मपर एक सरीखी श्रद्धा रखे सबको एक सरीखा माने । मि० ( १३ ) संशय मिथ्यात्व- वीतरागके वचनोंपर संकल्प विकरूप करना और उसपर संशय करना । मि० ( १४ ) अनाभोग मिध्यात्व - जिसको धर्माधर्म, हिताहितका कुछ भी ख्याल नहीं है अजाणपनेसे या बेदरकारीसे हरएक काम करता है । मिथ्यात्वादि को सेवन करता है मि० ( १५ ) अभिनिवेश मिथ्यात्व-धर्माधर्म, सत्यासत्यकी गवेver और विचार करके उसका निश्चय होनेपर भी अपने हठकों नहीं छोडना । मि० ( १६ ) लौकिक मिध्यात्व-लोकोंके देखादेखी मिथ्यात्वकी क्रिया करे अर्थात् धन पुत्रादिके लिये लौकिक देवोंकी सेवा उपासना करे। मि०
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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