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________________ अनिवृत्तीबादर० [१०] सुक्ष्मसम्पराय० [११] उपशाम्तमोह० [१२] क्षीणमोह० [१३] संयोगी० [१४] अयोगी गुणस्थानक. [२] लक्षणद्वार -[१] मिथ्यात्व गुणस्थानकके तीन भेद अनादी अनन्त [ अभव्यकी अपेक्षा ] [२] अनादी सान्त [ भव्यापेक्षा] [३] सादीसान्त [सम्यक्त्व प्राप्त करके पीछा मिथ्यात्वमे गया उसकी अपेक्षा ] और मिथ्यात्व दो प्रकारका एक व्यक्त मि० दसरा अव्यक्त मि. जिसमें एकेन्द्रिय बेरिन्द्रिय तेरिन्द्रिय चौरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रियमें अव्यक्त मिथ्या. त्व है और पंचेन्द्रिय कितनेक व्यक्त मि० कितनेक अव्यक्त मि. है जिस्मे व्यक्त मि० के २५ भेद है यथा (१)जीवको अजीव श्रद्धे-जैसे कितनेक लोक एकेन्द्रिय आदिको जीव नहीं मानते हैं । केवल चलते फिरते ही को जीवं मानते हैं यह एक किस्म का मिथ्यात्व है। ..(२) अजीवको जीव श्रद्धे-जैसे जितने जगत्मे पदार्थ है वे सब जीव है । यानि जड पदार्थोंकों भी जीव माने मि० (३) साधुको असाधु श्रद्धे-याने, जो पंच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति आदि सदाचारमे प्रवृत्ति करनेवालेको साधु न माने। मि० (४, असाधुको साधु श्रद्धे-यथा आरम्भ, परिग्रह, भांग, गांजा, चडसादि पीनेवाले अनेक संसारी जीवोंको भी साधु माने । मिः [५] धर्मको अधर्म श्रद्धे-जैसे अहिंसा, सत्य शील, तपादि शुद्ध धर्मको अधर्म समझे । वह भी मिथ्यात्व है। (६) अधर्मको धर्म श्रद्धे-जैसे यज्ञ, होम, जप, पंचाग्नि तापना, कन्दमूल खाना, ऋतुदान देना इत्यादि अधर्मको धर्म माने । मि.
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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